पुरुषार्थ आराधक।।
तमाम विवादों के बीच एक सवाल आज भी निवेशकों को सता रहा है कि क्या वाकई नोएडा एक्सटेंशन में आशियाने का सपना पूरा हो पाएगा। वर्तमान के तमाम समीकरणों पर गौर किया जाए, तो इसका सीधा सा जवाब है, हां। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर निगाह डालें, तो कोर्ट की मंशा भी किसानों के साथ आम निवेशक के हितों को बचाने की है। यह बात अब सार्वजनिक हो गई है कि किसानों को जमीन नहीं अतिरिक्त मुआवजा चाहिए।
इस विवाद में तीन पक्ष हैं, सरकार, किसान और बिल्डर। इन तीनों के बीच खींचतान में फंसा है आम निवेशक। लेकिन तीनों ही पक्ष नहीं चाहते कि निवेशक का पैसा इस फसाद का शिकार बने। वे सीधे आम आदमी का सपना नोएडा एक्सटेंशन में पूरा होते देखना चाहते हैं। तमाम पहलुओं पर गौर करें, तो सारा झगड़ा बड़े मुआवजे का है। यह मसला पॉलिटिकली मोटिवेटेड भी है। चूंकि यूपी में चुनाव नजदीक है लिहाजा कुछ तथाकथित किसान नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस मसले को अपनी ढाल बना रहे हैं।
अगर पुश्तैनी किसानों की यंग जेनरेशन के मन में झांका जाए, तो वे लोग आज अपने पुश्तैनी काम को नहीं करना चाहते। दबी जुबान में ही सही लेकिन तमाम किसानों को जमीन से ज्यादा मुआवजे की चिंता है। इसका उदाहरण हम शाहबेरी और पतवाड़ी में देख चुके हैं। शाहबेरी में भले ही किसानों ने कोर्ट में जंग जीत ली लेकिन क्या वे वाकई आज भी अपनी जमीन पर खेती कर रहे हैं। जमीन का एक बड़ा टुकड़ा अब उपजाऊ नहीं रहा हैं। जो बचा है, उसमें भी किसान खेती करने को तैयार नहीं हैं। इस समय नोएडा एक्सटेंशन भूमि अधिग्रहण मामला पॉजिटिव दिशा में जा रहा है। इसका श्रेय मूल रूप से ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन, बिल्डर्स बिरादरी और सांसद सुरेंद्र सिंह नागर को जाता है।
अगर बात करें पतवाड़ी की, तो यहां पर 90 फीसदी से ज्यादा किसान मुआवजा उठा चुके हैं। पतवाड़ी गांव के प्रधान रेशपाल सिंह बड़े मुआवजे की रकम पतवाड़ी किसानों को दिलाकर संतुष्ट हैं। रेशपाल नहीं चाहते कि जमीन विवाद में आम निवेशक का पैसा फंसा रहे। पतवाड़ी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आदेश भी इस ओर इशारा करता है कि इस मसले का हल केवल ठंडे दिमाग से बातचीत करने का है। कोर्ट नहीं नहीं चाहता कि बिल्डिंग के रूप में खड़े लाखों निवेशकों का सपना चकनाचूर हो।
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन के मुताबिक, पतवाड़ी गांव का मामला निबट चुका है। इस मसले में कोर्ट का निर्देश काफी सराहनीय रहा। 1400 में से 1100 से ज्यादा किसानों ने बड़े मुआवजे की रकम प्राप्त करके ऐफिडेविट जमा करा दिए है, जिन्हें बाद में कोर्ट में भी पेश किया जा चुका है। रमा रमन ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी की तर्ज पर नोएडा एक्सटेंशन के अंतर्गत आने वाले अन्य गांव भी अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं लेकिन फिलहाल सारा ध्यान पतवाड़ी के पैक्ट पर ही है। रमा रमन ने इशारा किया कि कोर्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर पतवाड़ी एक मॉडल बन सकता है, जिसके बाद अन्य गांवों से भी आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट किया जा सकता है। मालूम हो कि अन्य गांव मसलन इटैड़ा, रोजा, खैर पुर, देवला आदि गांव के किसान मुआवजे को लेकर अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं। ये किसान पतवाड़ी की तर्ज पर बढ़े मुआवजे की बात कर रहे हैं।
नहीं पड़ेगा असर निवेशक पर
सुपरटेक कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर आर के अरोड़ा ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी पैक्ट में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का काम सराहनीय रहा। पतवाड़ी पैक्ट से हजारों निवेशकों को राहत की सांस मिलेगी। वह कहते हैं कि हमारे निवेशकों का हित सर्वोपरि है, जिसके तहत वर्तमान निवेशकों पर इस पैक्ट का कोई बोझ नहीं बढ़ेगा। जिन शर्तों के साथ निवेशकों ने अपने फ्लैटों की बुकिंग कराई थी, उन्हीं शर्तों के तहत उन्हें फ्लैट मुहैया कराए जाएंगे। वहीं, आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल शर्मा ने कहा कि निवेशकों को बिल्डर्स और अथॉरिटी के प्रयासों पर भरोसा है। पतवाड़ी की तर्ज पर अन्य गांव भी सेटलमेंट के लिए आगे आ रहे हैं। यह खबर आम निवेशक के लिए अच्छी है। हमने अपने ग्रुप और क्रेडाई की ओर से पहले ही घोषणा कर दी थी कि अतिरिक्त मुआवजे का बोझ भले ही बिल्डरों पर पड़े लेकिन इसका असर निवेशक पर नहीं पड़ेगा।
किसानों में मनी मैनेजमेंट का अभाव
तकरीबन आठ साल पहले एनएच 24 से सटे गाजियाबाद के तहत आने वाले गांवों में बिल्डरों ने सीधी किसानों से जमीन खरीदकर टाउनशिप लॉन्च की। इस विकास की इबारत को आगे लिखने के लिए बिल्डरों की नजर इस इलाके से सटे, ग्रेटर नोएडा के तहत आने वाले गांवों मसलन शाहबेरी, इटैड़ा, रोजा, जलालपुर, बिसरख आदि पर गई। लेकिन गाजियाबाद की तर्ज पर यहां बिल्डरों को सीधा जमीन खरीदने के लिए लाइसेंस नहीं आवंटित किए गए और सरकार ने खुद जमीन अधिग्रहित कर बिल्डरों को बेचना मुनासिब समझा।
अगर, तमाम पहलूओं पर गौर किया जाए, तो साल 2008 में यूपी सरकार ने नोएडा एक्सटेशन का भूमि अधिग्रहण शुरू किया था। इस दौरान किसानों को अच्छा खासा मुआवजा मिला था। कहावत है कि पैसे से पैसा बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है और यही बात यहां पर भी लागू हुई। मनी मैनेजमेंट के अभाव में किसान की तिजोरियां खाली होती चली गईं और एक मोड़ ऐसा आया कि वे खाली तिजोरियों के साथ अपने को ठगा महसूस करने लगे। अगर, सरकार मुआवजे के साथ किसानों को ध्यान में रखकर कोई पॉलिसी लाती तो शायद, यह विवाद इतना उग्र रूप नहीं ले सकता था। भले ही सरकार ने पतवाड़ी किसानों को दोबारा बड़ा मुआवजा दे दिया हो लेकिन ये सवाल आज भी बरकरार है कि बड़ा मुआवजा कितने दिनों तक किसानों की जेब की रौनक बना रहेगा।
तमाम विवादों के बीच एक सवाल आज भी निवेशकों को सता रहा है कि क्या वाकई नोएडा एक्सटेंशन में आशियाने का सपना पूरा हो पाएगा। वर्तमान के तमाम समीकरणों पर गौर किया जाए, तो इसका सीधा सा जवाब है, हां। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर निगाह डालें, तो कोर्ट की मंशा भी किसानों के साथ आम निवेशक के हितों को बचाने की है। यह बात अब सार्वजनिक हो गई है कि किसानों को जमीन नहीं अतिरिक्त मुआवजा चाहिए।
इस विवाद में तीन पक्ष हैं, सरकार, किसान और बिल्डर। इन तीनों के बीच खींचतान में फंसा है आम निवेशक। लेकिन तीनों ही पक्ष नहीं चाहते कि निवेशक का पैसा इस फसाद का शिकार बने। वे सीधे आम आदमी का सपना नोएडा एक्सटेंशन में पूरा होते देखना चाहते हैं। तमाम पहलुओं पर गौर करें, तो सारा झगड़ा बड़े मुआवजे का है। यह मसला पॉलिटिकली मोटिवेटेड भी है। चूंकि यूपी में चुनाव नजदीक है लिहाजा कुछ तथाकथित किसान नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस मसले को अपनी ढाल बना रहे हैं।
अगर पुश्तैनी किसानों की यंग जेनरेशन के मन में झांका जाए, तो वे लोग आज अपने पुश्तैनी काम को नहीं करना चाहते। दबी जुबान में ही सही लेकिन तमाम किसानों को जमीन से ज्यादा मुआवजे की चिंता है। इसका उदाहरण हम शाहबेरी और पतवाड़ी में देख चुके हैं। शाहबेरी में भले ही किसानों ने कोर्ट में जंग जीत ली लेकिन क्या वे वाकई आज भी अपनी जमीन पर खेती कर रहे हैं। जमीन का एक बड़ा टुकड़ा अब उपजाऊ नहीं रहा हैं। जो बचा है, उसमें भी किसान खेती करने को तैयार नहीं हैं। इस समय नोएडा एक्सटेंशन भूमि अधिग्रहण मामला पॉजिटिव दिशा में जा रहा है। इसका श्रेय मूल रूप से ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन, बिल्डर्स बिरादरी और सांसद सुरेंद्र सिंह नागर को जाता है।
अगर बात करें पतवाड़ी की, तो यहां पर 90 फीसदी से ज्यादा किसान मुआवजा उठा चुके हैं। पतवाड़ी गांव के प्रधान रेशपाल सिंह बड़े मुआवजे की रकम पतवाड़ी किसानों को दिलाकर संतुष्ट हैं। रेशपाल नहीं चाहते कि जमीन विवाद में आम निवेशक का पैसा फंसा रहे। पतवाड़ी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आदेश भी इस ओर इशारा करता है कि इस मसले का हल केवल ठंडे दिमाग से बातचीत करने का है। कोर्ट नहीं नहीं चाहता कि बिल्डिंग के रूप में खड़े लाखों निवेशकों का सपना चकनाचूर हो।
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन के मुताबिक, पतवाड़ी गांव का मामला निबट चुका है। इस मसले में कोर्ट का निर्देश काफी सराहनीय रहा। 1400 में से 1100 से ज्यादा किसानों ने बड़े मुआवजे की रकम प्राप्त करके ऐफिडेविट जमा करा दिए है, जिन्हें बाद में कोर्ट में भी पेश किया जा चुका है। रमा रमन ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी की तर्ज पर नोएडा एक्सटेंशन के अंतर्गत आने वाले अन्य गांव भी अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं लेकिन फिलहाल सारा ध्यान पतवाड़ी के पैक्ट पर ही है। रमा रमन ने इशारा किया कि कोर्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर पतवाड़ी एक मॉडल बन सकता है, जिसके बाद अन्य गांवों से भी आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट किया जा सकता है। मालूम हो कि अन्य गांव मसलन इटैड़ा, रोजा, खैर पुर, देवला आदि गांव के किसान मुआवजे को लेकर अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं। ये किसान पतवाड़ी की तर्ज पर बढ़े मुआवजे की बात कर रहे हैं।
नहीं पड़ेगा असर निवेशक पर
सुपरटेक कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर आर के अरोड़ा ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी पैक्ट में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का काम सराहनीय रहा। पतवाड़ी पैक्ट से हजारों निवेशकों को राहत की सांस मिलेगी। वह कहते हैं कि हमारे निवेशकों का हित सर्वोपरि है, जिसके तहत वर्तमान निवेशकों पर इस पैक्ट का कोई बोझ नहीं बढ़ेगा। जिन शर्तों के साथ निवेशकों ने अपने फ्लैटों की बुकिंग कराई थी, उन्हीं शर्तों के तहत उन्हें फ्लैट मुहैया कराए जाएंगे। वहीं, आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल शर्मा ने कहा कि निवेशकों को बिल्डर्स और अथॉरिटी के प्रयासों पर भरोसा है। पतवाड़ी की तर्ज पर अन्य गांव भी सेटलमेंट के लिए आगे आ रहे हैं। यह खबर आम निवेशक के लिए अच्छी है। हमने अपने ग्रुप और क्रेडाई की ओर से पहले ही घोषणा कर दी थी कि अतिरिक्त मुआवजे का बोझ भले ही बिल्डरों पर पड़े लेकिन इसका असर निवेशक पर नहीं पड़ेगा।
किसानों में मनी मैनेजमेंट का अभाव
तकरीबन आठ साल पहले एनएच 24 से सटे गाजियाबाद के तहत आने वाले गांवों में बिल्डरों ने सीधी किसानों से जमीन खरीदकर टाउनशिप लॉन्च की। इस विकास की इबारत को आगे लिखने के लिए बिल्डरों की नजर इस इलाके से सटे, ग्रेटर नोएडा के तहत आने वाले गांवों मसलन शाहबेरी, इटैड़ा, रोजा, जलालपुर, बिसरख आदि पर गई। लेकिन गाजियाबाद की तर्ज पर यहां बिल्डरों को सीधा जमीन खरीदने के लिए लाइसेंस नहीं आवंटित किए गए और सरकार ने खुद जमीन अधिग्रहित कर बिल्डरों को बेचना मुनासिब समझा।
अगर, तमाम पहलूओं पर गौर किया जाए, तो साल 2008 में यूपी सरकार ने नोएडा एक्सटेशन का भूमि अधिग्रहण शुरू किया था। इस दौरान किसानों को अच्छा खासा मुआवजा मिला था। कहावत है कि पैसे से पैसा बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है और यही बात यहां पर भी लागू हुई। मनी मैनेजमेंट के अभाव में किसान की तिजोरियां खाली होती चली गईं और एक मोड़ ऐसा आया कि वे खाली तिजोरियों के साथ अपने को ठगा महसूस करने लगे। अगर, सरकार मुआवजे के साथ किसानों को ध्यान में रखकर कोई पॉलिसी लाती तो शायद, यह विवाद इतना उग्र रूप नहीं ले सकता था। भले ही सरकार ने पतवाड़ी किसानों को दोबारा बड़ा मुआवजा दे दिया हो लेकिन ये सवाल आज भी बरकरार है कि बड़ा मुआवजा कितने दिनों तक किसानों की जेब की रौनक बना रहेगा।
source : NBT
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