विनोद शर्मा ॥ नोएडा
शहर के मास्टरप्लान 2031 को अंतिम रूप देने के लिए मसौदा इन दिनों लखनऊ में शासन स्तर पर पेंडिंग है। नोएडा अथॉरिटी की बोर्ड बैठक ने इसे मंजूरी देने के बाद शासन को भेज दिया था। वहां लैंड यूज चेंज के मुद्दे पर शासन के अफसरों और नोएडा अथॉरिटी के अफसरों के बीच नुक्ताचीनी चल रही है। पिछले तीन चार साल में हुए लैंड यूज चेंज के कुछ मामलों को मास्टरप्लान 2031 में स्थाई रूप से नक्शे में दिखाने पर एकमत राय नहीं बन पा रही है। सूत्रों का कहना है कि यह साल चुनावी वर्ष है। सभी का मानना है कि 30 सितंबर को बाद कोई भी सीनियर अफसर नीतिगत फैसलों में अपनी सीधे भागीदारी नहीं चाहता। नवंबर में प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो सकती है और फरवरी में अन्य राज्यों के साथ ही यूपी में भी चुनावों की तैयारी गुपचुप ढंग से चल रही हैं।
सूत्रों ने बताया कि हाल ही में नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 69 और सेक्टर 151 में लगभग 83 एकड़ जमीन का लैंड यूज चेंज किया है। इसके लिए पब्लिक नोटिस जारी कर आपत्ति मांगी गई थी। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अथॉरिटी ने एक साथ ही बोर्ड में यह प्रस्ताव मंजूर कर लिया और मास्टरप्लान 2031 में इसे शामिल भी कर दिया। इतनी जल्दबाजी को लेकर प्रमुख सचिव स्तर के अफसर आशंकित हो गए।
प्रदेश स्तर के सीनियर अफसरों के संशय की एक खास वजह विपक्ष के निशाने पर नोएडा , ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे की वर्किंग स्टाइल का होना है। खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी भट्टा पारसौल की घटना के बाद से लगातार अपने सिपहसालारों के जरिए यहां के अलॉटमेंट से लेकर सारी प्रक्रिया पर पैनी निगाह रखे हुए हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव किरीट सौमेया ने पिछले पांच महीनों में अकेले नोएडा अथॉरिटी में लगभग 40 के करीब आरटीआई दाखिल की हैं। इनमें फार्म हाऊस के आवंटन से लेकर लैंड यूज चेंज की प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाते हुए तथ्य एकत्र करने का प्रयास किया है। इसी तरह बिल्डरों को हुए आवंटन की प्रक्रिया में नियम कानून ताक पर रखकर आवंटनों की कंप्लेंट गवर्नर , राष्ट्रपति , सीवीसी और सीएजी को की जा चुकी है। एसपी ने भी जिला गौतमबुद्ध नगर में जमीन आवंटन से लेकर बिल्डरों को देने तक में भारी घपले का मुद्दा उठाया था। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अफसर अपने उपर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। शासन स्तर पर सीनियर अधिकारियों के रवैये की एक वजह हाईकोर्ट में चल रहे केस भी हैं। इनमें ज्यादातर मामले लैंड यूज चेंज से ही जुड़े हैं। किसानों का कहना है कि जमीन किसी अन्य प्रयोग के लिए अधिग्रहीत की गई थी और इनका आवंटन अन्य प्रयोजनों के लिए किया गया है।
शहर के मास्टरप्लान 2031 को अंतिम रूप देने के लिए मसौदा इन दिनों लखनऊ में शासन स्तर पर पेंडिंग है। नोएडा अथॉरिटी की बोर्ड बैठक ने इसे मंजूरी देने के बाद शासन को भेज दिया था। वहां लैंड यूज चेंज के मुद्दे पर शासन के अफसरों और नोएडा अथॉरिटी के अफसरों के बीच नुक्ताचीनी चल रही है। पिछले तीन चार साल में हुए लैंड यूज चेंज के कुछ मामलों को मास्टरप्लान 2031 में स्थाई रूप से नक्शे में दिखाने पर एकमत राय नहीं बन पा रही है। सूत्रों का कहना है कि यह साल चुनावी वर्ष है। सभी का मानना है कि 30 सितंबर को बाद कोई भी सीनियर अफसर नीतिगत फैसलों में अपनी सीधे भागीदारी नहीं चाहता। नवंबर में प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो सकती है और फरवरी में अन्य राज्यों के साथ ही यूपी में भी चुनावों की तैयारी गुपचुप ढंग से चल रही हैं।
सूत्रों ने बताया कि हाल ही में नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 69 और सेक्टर 151 में लगभग 83 एकड़ जमीन का लैंड यूज चेंज किया है। इसके लिए पब्लिक नोटिस जारी कर आपत्ति मांगी गई थी। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अथॉरिटी ने एक साथ ही बोर्ड में यह प्रस्ताव मंजूर कर लिया और मास्टरप्लान 2031 में इसे शामिल भी कर दिया। इतनी जल्दबाजी को लेकर प्रमुख सचिव स्तर के अफसर आशंकित हो गए।
प्रदेश स्तर के सीनियर अफसरों के संशय की एक खास वजह विपक्ष के निशाने पर नोएडा , ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे की वर्किंग स्टाइल का होना है। खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी भट्टा पारसौल की घटना के बाद से लगातार अपने सिपहसालारों के जरिए यहां के अलॉटमेंट से लेकर सारी प्रक्रिया पर पैनी निगाह रखे हुए हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव किरीट सौमेया ने पिछले पांच महीनों में अकेले नोएडा अथॉरिटी में लगभग 40 के करीब आरटीआई दाखिल की हैं। इनमें फार्म हाऊस के आवंटन से लेकर लैंड यूज चेंज की प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाते हुए तथ्य एकत्र करने का प्रयास किया है। इसी तरह बिल्डरों को हुए आवंटन की प्रक्रिया में नियम कानून ताक पर रखकर आवंटनों की कंप्लेंट गवर्नर , राष्ट्रपति , सीवीसी और सीएजी को की जा चुकी है। एसपी ने भी जिला गौतमबुद्ध नगर में जमीन आवंटन से लेकर बिल्डरों को देने तक में भारी घपले का मुद्दा उठाया था। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अफसर अपने उपर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। शासन स्तर पर सीनियर अधिकारियों के रवैये की एक वजह हाईकोर्ट में चल रहे केस भी हैं। इनमें ज्यादातर मामले लैंड यूज चेंज से ही जुड़े हैं। किसानों का कहना है कि जमीन किसी अन्य प्रयोग के लिए अधिग्रहीत की गई थी और इनका आवंटन अन्य प्रयोजनों के लिए किया गया है।
source : NBT
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