Noida farmers threatened at a panchayat on Sunday that if their demand of regularizing shops on abadi land without any fee was not met, they would block construction work at housing projects from September 21.
noida farmers1 Noida farmers demand of no fee regularization...
noida- farmers
They also threatened the Noida Authority that they would take Authority officials hostage if they come to Noida villages to conduct a survey of the abadi land. Another group of Noida farmers have threatened to gherao Authority officials in their Sector 6 office in Harola on September 23.
However, the government seemed to have toughened its stand. In a meeting in Lucknow between the Uttar Pradesh government and Noida CCEO Balwinder Kumar on Sunday evening, it was decided that changes would be brought in the Abadi Niyamawali (bylaws), giving the Noida Authority the powers to decide the rate which the farmers would have to pay for regularizing the commercial establishments.
“The current rate of regularization of commercial establishments is 125-200% more than residential areas. We will hold a meeting with the farmers to reach a consensus and decide what needs to be paid by them in order to regularize their shops etc in the abadi areas,” said Kumar.
The Authority has maintained that another survey of all abadi claims is essential to confirm the bonafide owners and determine the exact abadi area and the areas where shops and other commercial establishments have come up.
For regularizing commercial areas, which the Authority treats as encroachment, farmers are required to pay a fee. The farmers, particularly those in villages like Barola, Harola, Naya Bans and Nithari, running shops, restaurants etc are claiming these were part of their abadi land and, hence, be left untouched. They have also demanded that the Authority must give them a freehold right on their abadi land instead of leasing it to them.
On Sunday, farmers from 30 villages gathered at the panchayat in Vrindavan Garden in Hoshiyarpur. It began around 10am and continued till 12.30pm, following which the farmers tore and set on fire the abadi regularizing list released by the Authority. On Friday, the Authority released the final list of the 1,095 families in 12 villages who will get the 5% developed plots in the first phase in which a total of 118 acres land will be distributed.

No End In Sight For Abadi Land Rown Between Noida, Farmers

After a day of heavy-duty negotiations between the Noida Authority and farmer leaders on Monday, they still do not seem to have arrived at a compromise on the issue of abadi (residential) land regularisation. The farmers have said that no agreement has been reached in this regard, and their agitation planned for September 21 would continue.
However, senior officials of the Noida Authority presented a different picture, stating that there was consensus on most issues that the farmers had raised, with only one or two needing further negotiations.
The sticking points between the two sides pertain to regularisation of abadi land, including commercial establishments, the delay in handing over developed plots, and a land dispute in Sorkha village. On Saturday, the Noida Authority had released a list of 1,095 farmers from 12 villages whose abadi land would be regularised, and would be given 5 per cent developed plots.
Mahinder Awana, spokesperson of the Kisan Sangharsh Samiti, said, “Only a small part of the abadi land has been regularised. Also, some of us have shops on our abadi land. We want them to be regularised without any fee, but the Authority says that we would only get them on lease. We want them to be given to us, freehold. It was part of our agreement on July 30, due to which we stopped agitating.”

ग्रेटर नोएडा, सं : ग्रामीण पंचायत मोर्चा की बृहस्पतिवार को सादुल्लापुर गांव में पंचायत हुई। किसानों ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद कई बिल्डर निर्माण कार्य करा रहे हैं। कोर्ट का फैसला आने तक नोएडा एक्सटेंशन में निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। इसकी शिकायत प्राधिकरण से भी की जाएगी। डाढ़ा गांव के किसानों ने चल रहे निर्माण कार्य को बंद कराने की मांग की है।
किसानों ने कहा कि नियमानुसार कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही यथास्थिति बनी रहनी चाहिए। नोएडा एक्सटेंशन में जमीन अधिग्रहण की सुनवाई पर अभी कोई फैसला नहीं आया है। इससे पहले ही बिल्डरों ने अपनी परियोजनाओं में निर्माण कार्य शुरू करा दिया है। यह कोर्ट की अवमानना है। शुक्रवार को किसान इसकी शिकायत प्राधिकरण से करेंगे। बैठक में मोर्चा के संयोजक प्रधान रणवीर सिंह, अध्यक्ष तेजराम यादव, दुष्यंत नागर, डा. जगदीश नागर, बिजेंद्र नागर, सुनील शर्मा, मुकेश यादव, पदम सिंह, अशोक त्यागी आदि मौजूद रहे। गांव डाढ़ा में किसानों ने पंचायत कर निर्माण कार्य का विरोध जताया है। किसानों का कहना है कि हाईकोर्ट में जमीन अधिग्रहण को लेकर मामला लंबित है, ऐसे में निर्माण कार्य बंद कराया जाए। पंचायत में वीर सिंह, संतराम भाटी, रेशपाल, अरविंद, रतन सिंह, करतार प्रधान, चिंताराम, हरिकिशन समेत गांव के अन्य किसान मौजूद थे।

दुनिया भर में ब्याज दरों में लगातार कमी हो रही है, लेकिन भारत में इसकी सूरत बनती नजर नहीं आ रही। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने भी अब साफ संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि सस्ते बैंक कर्ज के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए। आरबीआइ ने इसके लिए महंगे कच्चे तेल को जिम्मेदार ठहराया है। आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण की मानें तो ब्याज दरें फिलहाल नीचे की तरफ आने वाली नहीं हैं। दो दिन पहले आरबीआइ गवर्नर डी. सुब्बाराव ने यह बात कही थी कि महंगाई पर काबू पाने में अभी कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है। इसलिए ब्याज दरों को लेकर केंद्रीय बैंक का रुख नहीं बदलेगा। उन्होंने यह भी संकेत दिए थे कि आरबीआइ जरूरत पड़ने पर ब्याज दरों को और बढ़ा भी सकता है। बुधवार को गोकर्ण ने संवाददाताओं को बताया कि कच्चे तेल की कीमतें अभी भी काफी ऊपर हैं। ऐसे में ब्याज दरों को नीचे लाने के आसार कम हुए हैं। वर्ष 2008 की ग्लोबल मंदी के दौरान कच्चे तेल की कीमतें कुछ दिनों के भीतर काफी नीचे आ गई थीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। वर्ष 2008-09 के ग्लोबल मंदी के दौरान दो हफ्ते के भीतर कच्चे तेल की कीमत 148 डॉलर प्रति बैरल के रिकार्ड स्तर से घटकर 53 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई थी। लेकिन अमेरिका व यूरोप के कई देशों में मांग कम होने के बावजूद कच्चे तेल की कीमत बुधवार को 107 डॉलर प्रति बैरल के करीब थी। कच्चे तेल की कीमत भारत में महंगाई की स्थिति को काफी हद तक प्रभावित करती है। आयात पर निर्भर होने की वजह से भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतें पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार से तय होती हैं। तेल कंपनियां कई बार पेट्रोल महंगा कर चुकी हैं, जिससे महंगाई की दर बढ़ रही है। Source : Dainik Jagran

वी.के.शुक्ला, नई दिल्ली दिल्ली सरकार की बारापुला एलिवेटेड रोड के यमुनापार के यूपी लिंक रोड (मयूर विहार फेज वन के सामने) तक विस्तार की योजना पर डीएनडी फ्लाई-वे पेंच फंसाने की तैयारी हो रही है। हालांकि, योजना अभी प्रथम चरण में है लेकिन इस पर डीएनडी फ्लाई-वे के अधिकारियों ने एतराज जताया है। डीएनडी के सबसे प्रमुख तर्क यह है कि नया पुल बनने से उनकी कमाई पर असर पड़ेगा। इस संबंध में पिछले दिनों डीएनडी के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मिलकर सुझाव दिया कि यदि इस योजना के तहत डीएनडी का ही उपयोग हो तो सरकार के पैसे बचेंगे। हालांकि, सरकार की तरफ से डीएनडी को कोई आश्वासन नहीं मिला है। दिल्ली सरकार की तरफ से इस प्रोजेक्ट पर कंसलटेंट नियुक्त करने की बात कही जा रही है। यदि सरकार की योजना धरातल पर आती है तो यमुनापार के लोगों को आइएनए मार्केट तक आने-जाने के लिए नया रास्ता मिल जाएगा। इससे उनका समय बचेगा और इसके लिए कोई अतिरिक्त भुगतान भी नहीं करना पड़ेगा। फिलहाल बारापुला सराय काले खां से नेहरू स्टेडियम तक है। जिसे आइएनए मार्केट तक बढ़ाए जाने की योजना है। इस मामले में दिल्ली के शहरी विकास मंत्री राजकुमार चौहान का कहना है कि हमारी योजना पूर्वी दिल्ली को दक्षिणी दिल्ली से जोड़ने की है। लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए इस पर काम हो रहा है। डीएनडी के अधिकारियों का तर्क है कि बारापुला का यमुनापार तक विस्तार न किया जाए बल्कि सराय काले खां के पास से आश्रम चौक के पास डीएनडी में मिला दिया जाए। इससे दिल्ली सरकार का खर्च बचेगा और डीएनडी से दिल्ली आने वाले लोगों को सीधा रास्ता मिल जाएगा। लोकनिर्माण विभाग के अनुसार डीएनडी को इसलिए आपत्ति है कि बारापुला को फेज-तीन के तहत मयूर विहार के सामने यूपी लिंक रोड के जिस प्वाइंट पर ले जाया जाना है, उसी के पास दिल्ली को जोड़ने वाला डीएनडी का अपना लिंक रोड शुरू होता है। जो यमुना पर बने डीएनडी पुल से कुछ पहले मुख्य मार्ग में मिलता है। लोक निर्माण विभाग के अनुसार कुल मिलाकर डीएनडी को इस बात का डर सता रहा है कि बारापुला का यमुनापार तक विस्तार होने से उनकी आय पर इसका असर पड़ेगा। चौहान के अनुसार यमुनापार में बारापुला के विस्तार को लेकर डीएनडी के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखी थी। मगर सरकार की ओर से इस बारे में उन्हें कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं। वायदे से पीछे नहीं हट सकती सरकार डीएनडी फ्लाई-वे के सीनियर मैनेजर (टोल) अनवर अब्बासी कहते हैं कि हम लोगों ने जब डीएनडी बनाया था तो यूपी व दिल्ली सरकार के साथ सपोर्टिग एग्रीमेंट किया था कि जब तक हमारी लागत नहीं निकल जाएगी तब तक वो डीएनडी के आसपास कोई मार्ग नहीं बनाएंगे। अनुबंध के हिसाब से अभी तक इस पर 55 फीसदी लक्ष्य ही पूरा हो सका है। अब्बासी कहते हैं कि हमने दिल्ली सरकार को यह भी बताया है कि यदि आश्रम के पास बारापुला को डीएनडी से जोड़ दिया जाता है तो भविष्य में आइएनए माार्केट से बारापुला, फिर डीएनडी, ग्रेटर नोएडा एक्सपे्रस-वे व यमुना एक्सपे्रस-वे होते हुए लोग सीधे आगरा तक आ जा सकेंगे। बारापुला के डीएनडी से जुड़ने से सराय काले खां से आश्रम तक लगने वाला जाम भी समाप्त हो सकेगा। अब्बासी का कहना है कि मुख्यमंत्री ने उनसे कहा है कि योजना के लिए कंसलटेंट की नियुक्ति की गई है जिससे इस पूरे मामले पर स्टडी कराई जाएगी। उसके लिए उन्होंने दो माह का समय मांगा है। Source : Dainik Jagran

नोएडा एक्सटेंशन में जमीनी विवाद हाईकोर्ट में पहुंचने के कारण यहां हिंडन नदी के ऊपर बनने वाला दूसरा ओवरब्रिज भी अधर में लटक गया है। प्राधिकरण कोर्ट के निर्णय का इंतजार कर रहा है। फैसला आने के बाद ही निर्माण शुरू करने के बारे में निर्णय लिया जाएगा। इससे आम जनता की भी दिक्कत बढ़ सकती है। नोएडा एक्सटेंशन में बनने वाले सवा से डेढ़ लाख फ्लैटों में करीब दस लाख लोग रहेंगे। इससे भविष्य में एक्सटेंशन में वाहनों का दबाव बढ़ जाएगा। सबसे बुरी हालत नोएडा व ग्रेटर नोएडा को जोड़ने वाले हिंडन नदी के पुल पर बनेगी। दोनों शहरों को जोड़ने के लिए कुलेसरा व पर्थला खंजरपुर के पास पुल बने हुए हैं, लेकिन एक्सटेंशन में प्रस्तावित आबादी को देखते हुए यह नाकाफी है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने दोनों शहरों के बीच रास्ता सुगम करने के लिए छह माह पहले हिंडन नदी पर एक और पुल बनाने का फैसला लिया था। डेढ़ किलोमीटर लंबा यह पुल ऐमनाबाद व बिसरख गांव के बीच बनाया जाना है। इससे कुलेसरा व पर्थला पुल पर वाहनों का दबाव कम हो जाएगा।प्राधिकरण ने दिसंबर 2011 तक ओवरब्रिज के निर्माण का लक्ष्य रखा था। नोएडा एक्सटेंशन में प्राधिकरण व किसानों के बीच जमीन अधिग्रहण को लेकर चल रहे विवाद की वजह से पुल का निर्माण तो दूर, योजना फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पाई है। अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि बिसरख व ऐमनाबाद दोनों गांवों के किसानों ने अधिग्रहण को हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाएगा, तब तक निर्माण शुरू करने में दिक्कत है। प्राधिकरण फैसला आने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू कराएगा। -- Source : Dainik Jagran

नोएडा, संवाददाता : नोएडा एक्सटेंशन को लेकर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पहले किसानों का विरोध-प्रदर्शन और फिर न्यायालय द्वारा जमीन अधिग्रहण को निरस्त करने के बाद अब खरीदार ही प्राधिकरण के हालिया फैसले के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। खरीदारों ने पिछली बोर्ड बैठक में ग्रुप हाउसिंग सोसायटी या बहुमंजिला बिल्डर्स फ्लैट का एफएआर बढ़ाने के फैसले पर आपत्ति दर्ज कराई है।
ज्ञात हो कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने दो सितंबर को हुई बोर्ड बैठक में ग्रुप हाउसिंग सोसायटी का एफएआर 2.75 से बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। अधिकारियों ने सर्वसम्मति से इसे बढ़ाकर 3.50 कर दिया था। इस प्रस्ताव का सबसे ज्यादा लाभ नोएडा एक्सटेंशन में अटके पड़े बिल्डरों के प्रोजेक्ट को मिलना है। हालांकि मामला कोर्ट में होने की वजह से फिलहाल इनका निर्माण कार्य दोबारा शुरू हो पाने की स्थिति स्पष्ट नहीं है। लेकिन प्राधिकरण अपनी तरफ से किसानों को मनाने का पूरा प्रयास कर रहा है। ऐसे में अगर काम दोबारा शुरू होता है तो बिल्डर मंजिल बढ़ाकर अतिरिक्त फ्लैट बनाकर अपनी क्षतिपूर्ति कर सकेंगे।
प्राधिकरण ने इस निर्णय के बाद जन सामान्य से इसके लिए आपत्तियां आमंत्रित की थी। इस पर नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ऑनर्स एंड मेंबर्स एसोसिएशन ने इस पर आपत्ति जताई है। एसोसिएशन ने एफएआर बढ़ाने को लेकर रविवार को अपने सदस्यों संग एक बैठक की। बैठक में निर्णय लिया गया कि एसोसिएशन की तरफ से इस संदर्भ में एक आपत्ति पत्र ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को दिया जाएगा। जरूरत पड़ने पर पदाधिकारी उनसे मिलकर भी इस निर्णय का विरोध जताएंगे। मंगलवार को एसोसिएशन की तरफ से उनकी आपत्तियों का पत्र प्राधिकरण को भेज दिया गया है। खरीदारों की यह आपत्ति बिल्डरों को मिलने वाली राहत की राह में रोड़ा साबित हो सकती है।
सुविधा घटेगी, परेशानी बढ़ेगी
एसोसिएशन के संस्थापक देवेन्द्र कुमार का मानना है कि अगर बढ़े हुए एफएआर के साथ नोएडा एक्सटेंशन में निर्माण शुरू हुआ तो खरीदारों की मुश्किल और बढ़ जाएगी। जनसंख्या घनत्व बढ़ने से आसपास के पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। साथ ही पार्किंग व जलापूर्ति जैसी सुविधा का भी टोटा सहना पड़ेगा। इसका परिणाम छोटी-छोटी बातों पर झगड़े के रूप में सामने आएगा।
परियोजना में होगी देरी
निदेशक विजय त्रिवेदी के मुताबिक काम रुकने से परियोजना में पहले ही देरी होना स्वाभाविक है। एफएआर बढ़ाने के बाद मंजिलें बढ़ने पर इसकी समयावधि और बढ़ जाएगी। इससे खरीदारों का इंतजार बढ़ जाएगा।
नए टावर खड़े होने लगेंगे
अध्यक्ष अभिषेक कुमार का मानना है कि एफएआर बढ़ने के बाद बिल्डर नए टॉवर खड़े करने लगेंगे। इससे छोटे से क्षेत्रफल में लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी और सड़कें सहित अन्य सभी जरूरतें कम पड़ने लगेंगी।
सही नहीं क्षमता से अधिक निर्माण
उपाध्यक्ष अनु खान ने बताया कि जिन लोगों ने शुरू में किसी वजह से बुकिंग की दस प्रतिशत की पूरी राशि जमा नहीं की है, उनसे बिल्डर अब शेष रकम 24 प्रतिशत ब्याज के साथ जमा कराने की बात कह रहे हैं। बिल्डर पुराने खरीदारों को रियायत नहीं दे रहे तो उन्हें ही प्राधिकरण क्यों सारी छूट दे।
खरीदारों का क्या दोष है
महासचिव स्वेता भारती कहती हैं कि जमीन कैसे अधिग्रहित हुई। उस पर क्या विवाद था, यह खरीदारों को नहीं पता था। फिर वह क्यों खामियाजा भुगतें। एफएआर बढ़ाने से सुविधाएं घटना स्वाभाविक है। वे इसका पुरजोर विरोध करेंगे।


NEFOMA is going to send objection letter  against the decision to increase the F.A.R. ( Floor Area Ratio ) into the greater noida. GNIDA has asked for any objections from public and we have 10 days time to submit the objections to GNIDA..
 

To
The Chief Executive Officer
Greater Noida Industrial Development Authority
Gautam Budh Nagar
Uttar Pradesh.


Sub : Regarding Increased Flat Area Ratio (FAR).



Dear Sir/Madam,

This has reference to the captioned subject. In this regard the members of Noida Extension Flat Owners and Members Association (NEFOMA) had a meeting dt. 25th Sept ‘ 2011. The NEFOMA group with around 300 members strongly oppose the increased FAR in Noida Extension projects. Please note that the increase in FAR will result in  more dense and taller towers/flats. More numbers of flats in turn will have more dense population. This will lead to water and environmental inconvenience to the flat owners. The risk during natural calamity like earthquake will also be incremented. Also the additional expansion due to increased FAR will delay the projects.
We, NEFOMA on behalf of all NE flat buyers, request you to look into the matter in the welfare of the buyers and withdraw the increase in FAR with immediate effect. We would be highly obliged to you.

Thanking you.



Regards.

For Noida Extension Flat Owners and Members Association (NEFOMA)




Shweta Bharti
(General Secretary)



Date : 26th September ‘ 2011.

आज से नोएडा के गांवों की होगी कोर्ट में सुनवाई ग्रेटर नोएडा : ग्रेटर नोएडा के नोएडा एक्सटेंशन व अन्य गांवों की हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सोमवार से न्यायालय नोएडा के गांवों के किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी कोर्ट में सोमवार को अपना पक्ष रखेगा। कोर्ट द्वारा प्राधिकरण से मांगी गई अधिग्रहण, आवंटन व नियोजन की पत्रावलियों को शनिवार को ट्रकों में भरकर इलाहाबाद भेज दिया गया था। ग्रेटर नोएडा के 40 व नोएडा के 23 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायालय ने 12 सिंतबर से प्रतिदिन सुनवाई करते हुए ग्रेटर नोएडा के गांवों के किसानों का पक्ष सुना। इसमें नौ दिन का समय लगा। न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को सोमवार को अपना पक्ष रखने के निर्देश दे रखे हैं। प्राधिकरण से अधिग्रहण, नियोजन व 1991 से अब तक हुए आवंटन की पत्रावली भी मांगी है। कोर्ट जानना चाहता है कि प्राधिकरण ने जनहित के लिए क्या कदम उठाए और भू उपयोग परिर्वतन कर किसी को विशेष फायदा पहुंचाने का प्रयास तो नहीं किया गया। प्राधिकरण के बाद न्यायालय बिल्डर व निवेशकों का पक्ष भी सुनेगा। नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट बायर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष राहुल शर्मा का कहना है कि निवेशकों का पक्ष मजबूती से रखने के लिए एसोसिएशन ने तैयारी पूरी कर ली है। इस सप्ताह कोर्ट निवेशकों का पक्ष सुन सकता है। नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के 23 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है। सूत्रों का कहना है कि कोर्ट प्राधिकरण का पक्ष सुनने के बाद इन गांवों की याचिकाओं पर सोमवार को ही सुनवाई कर सकता है।

Govt move to help Greater Noida builders hit by land row

Delhi/NCR
The Greater Noida Authority (GNIDA) has passed a proposal to increase the floor area ratio (FAR) of group housing plots from 2.75 to 3.50. The proposal was cleared in the 90th board meeting of the authority.
“Increasing the population density norm and the FAR allows developers to construct more and help builders to bring down the pro-rata land costs,” said Anil Sharma, CMD Amrapali Group and vice president of CREDAI-NCR.
At present, developers are allowed to build only around 2.75 times of the ground area of a project. That means, on a 1,00,000 sq feet plot of land, a builder can build 2,75,000 sq ft if it is a green building. That means that they can build 275 apartments of 1,000 sq feet each.
“We have sent the proposal to the state government for an increase in the existing FAR and also invited objections as well as suggestions on the proposal,” said a Greater Noida Authority official.
“After ironing out the objections we will forward the proposal to the state and as soon as we receive the nod, we will notify it for implementation,” he added.
Once approved, the Authority will allow developers to build 3.5 times of the ground area. That means, on a 1,00,000 sq ft land, a builder can build 350 flats. This will help them recover the extra cost they are likely to bear in the acquisition of land without putting burden on the buyers.
“The increase in the floor area ratio would be good for the buyers. Also, the hike in future projects of developers can be checked because of the enhanced FAR,” said Sharma.
“This move by the Authority will also address the issue of shortage of land, which is ultimate likely to occur. Moreover, increased FAR would translate into more flats and the concept of affordable housing could be revived,” added Sharma.
Some developers though are sceptical about the move, claiming that increased FAR would not decrease the load on them because of hiked rates of land. While agreeing that it would have a positive effect on future projects, the developers lamented the burden on existing projects. “In the past three months itself, the Greater Noida Authority has hiked land rates by more than 40% for all categories of land. This has put a tremendous burden on us. If we have to purchase an extra FAR for existing projects, we will again have to shell out more,” said R K Arora, CMD of Supertech Group.
“The Greater Noida Authority needs to devise other means to help us tide over this difficult time,” he added.
Source: The Times of India, New Delhi

नोएडा एक्सटेंशन के बिल्डरों की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए प्राधिकरण ने एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) को साढ़े तीन गुना कर दिया है। इससे अब 25 फीसदी फ्लैटों की तादाद बढ़ जाएगी। प्राधिकरण क्षेत्र में 15 मीटर ऊंची बिल्डिंग बनाने की इजाजत है। अब बिल्डरों को और ऊंची बिल्डिंग बनानी है तो इसके लिए उड्डयन विभाग से इजाजत लेनी होगी। माना जा रहा है प्राधिकरण की इस सौगात से नोएडा एक्सटेंशन में अब करीब 3.50 लाख फ्लैट बनाए जा सकेंगे। पहले यह तादाद 2.50 लाख थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने पिछले बोर्ड बैठक में एक और प्रस्ताव शामिल किया था जिसमें एफएआर को 3.50 गुना कर दिया। पहले यह 2.75 गुना था।

  • The floor area ratio (F.A.R.) is the principal bulk regulation controlling the size of  buildings.     F.A.R. is the ratio of total building floor area to the area of  the plot.
  • For example, if a plot measures 25 cents (approx. 10886 sq.ft) and the F.A.R. permissible  or that area is 2, then a maximum of 21772 sq.ft of space will be permitted to construct in all floors of the building put together.
  • Town Planning Schemes mandates different F.A.R. values for different areas.The F.A.R. value, when multiplied with the Plot area gives us the maximum floor area that can be constructed for a building in the plot. This is subject to satisfying other conditions such as Parking, setbacks, access width etc. 
  • Various tools are used by for regulating or guiding the development of our urban areas. The primary objective of using such tools is the optimal utilisation of precious land considering its use, reuse, misuse, disuse and abuse.
  • Among various development regulations adopted, Floor Area Ratio (F.A.R.) is one of the most important one, which regulates the bulk of the built space.Higher the F.A.R. value, more will be floor area within the same plot, and higher the pressure on land for infrastructure. Carrying capacity and development priorities assigned by the plan to each locality are the major factors which decide F.A.R. that can be permitted in an area.
  • F.A.R. values mainly determine the density or intensity of development  of an area. Hence different F.A.R. values are prescribed for different locations in development plans.
  • In brief; the permissible F.A.R. values are decided in relation to different inter-related aspects such as adequacy of water supply, sewerage system,solid waste disposal, road capacity, land availability, harmony with surrounding developments and other facilities, amenities and services.
  • In other words, F.A.R. is a very crucial regulation, which decides the intensity of development in an area and hence highest care is required in fixing its maximum allowable limit in different areas. It is high time for us to think about the Implications of F.A.R. on the development of our developing cities like Noida Extn.
Why F.A.R. is used?
  • Various tools are used by for regulating or guiding the development of our urban areas. The primary objective of using such tools is the optimal utilisation of precious land considering its use, reuse, misuse, disuse and abuse.
  • Among various development regulations adopted, Floor Area Ratio (F.A.R.) is one of the most important one, which regulates the bulk of the built space.
    Higher the F.A.R. value, more will be floor area within the same plot, and higher the pressure on land for infrastructure. Carrying capacity anddevelopment priorities assigned by the plan to each locality are the major factors which decide F.A.R. that can be permitted in an area.
  • F.A.R. values mainly determine the density or intensity of development  of an area. Hence different F.A.R. values are prescribed for different locations in development plans.

    In brief; the permissible F.A.R. values are decided in relation to different inter-related spects such as adequacy of water supply, sewerage system,solid waste disposal, road capacity, land availability, harmony with surrounding developments and other facilities, amenities and services.

    In other words, F.A.R. is a very crucial regulation, which decides the intensity of evelopment in an area and hence highest care is required in fixing its maximum allowable limit in different areas.

The Delhi High Court today questioned the Delhi Government, Union Government and the Delhi Development Authority (DDA) as to why petitions of nearly 172 farmers challenging the acquisition of their land in Village Barwala should not be admitted.Advocate Dr. Surat Singh representing the farmers argued that the Delhi Government sought to acquire their land by issuing notice under section 4 and section 17 of the Land Acquisition Act 1894, invoking the urgency clause, but till today the Government has not undertaken any substantial development work in the area in last (almost) two years since the issue of notice.
“So the claim of urgency on the part of the government was a colorable exercise of power”, he further contended.
Government counsel pointed out to the court that the farmers have already taken compensation and hence cannot challenge the acquisition proceedings now.
After hearing the counsel of both sides the division bench of Justice Sanjay Kishan Kaul and Justice Rajiv Shakdher issued show cause notices to the Centre and the Delhi Government as well as the DDA.
It may be remembered that farmers of Noida and Greater Noida have already approached the Allahabad High Court in large numbers on the issue.
The notices are returnable on 10 January 2012.

 नई दिल्ली नोएडा व ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण को लेकर हुए विवाद की आग दिल्ली के किसानों तक भी पहुंच गई है। बरवाला गांव के 172 किसानों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर उनकी जमीन अधिग्रहण करने के संबंध में दिल्ली सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को रद करने की मांग की है। अदालत ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार व दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। इस मामले में 10 जनवरी, 2012 को सुनवाई होगी। बरवाला गांव के 172 किसानों ने नोएडा जमीन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि सरकार की 25 नवंबर 2009 की उस अधिसूचना को रद किया जाए जिसमें इनकी 233 बीघा व दस बिसवा जमीन अधिग्रहित करने की बात कही गई थी। उनसे जमीन न ली जाए। या फिर सरकार को कहा जाए कि इनको बाजार मूल्य के हिसाब से जमीन का मुआवजा दिया जाए। मुआवजा 53 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दिया गया है, जबकि जमीन का बाजार मूल्य पांच करोड़ रुपये प्रति एकड़ है। इनका कहना है कि 6 मई 1992 में डीडीए ने इनके गांव का विकास करने के लिए एक आदेश पास किया था, परंतु कुछ नहीं किया गया। अब 28 साल बाद रोहिणी आवास योजना फेज-चार व पांच के नाम पर दिल्ली सरकार ने 25 नवंबर 2009 को एक अधिसूचना जारी की और अरजेंसी क्लाज लगाकर उनकी जमीन अधिग्रहित कर ली। उसके बाद भी 18 माह तक कुछ नहीं किया। जो साफ जाहिर कर रहा है कि कोई ऐसी गंभीर जरूरत नहीं थी।रोहिणी आवास योजना के नाम पर जो जमीन पहले ली गई थी, उसका भी पूरा उपयोग नहीं हुआ है। बीस अप्रैल, 2010 को सरकार ने कहा कि जमीन उनके कब्जे में आ गई है परंतु वह कागजातों में ही सरकार के कब्जे में है। असल में जमीन अब भी किसानों के पास ही है। एक जुलाई 2011 को जमीन अधिग्रहित करने वाले कलेक्टर ने उनको 53 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा तय करके दे दिया। 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बिना सही कारणों के अरजेंसी की बात कहना धोखा है।... Source : Dainik Jagran

फ्री होल्ड प्रॉपर्टी से मतलब है कि प्रॉपर्टी का मालिकाना हक अनिश्चितकाल या हमेशा के लिए खरीदार को ट्रांसफर कर दिया जाता है। भारत में ज्यादातर प्रॉपर्टी का टाइटल फ्री होल्ड है , लेकिन दिल्ली में चूंकि ज्यादातर जमीन सरकार के पास है , इसलिए यहां लीज होल्ड प्रॉपर्टी का चलन ज्यादा है। इस तरह की प्रॉपर्टी को टाइटल क्लियर कहा जाता है।

फायदे
- क्लियर टाइटल , यानी मालिकाना हक। प्रॉपर्टी को कभी भी बेचने की आजादी।
- प्रॉपर्टी के इस्तेमाल पर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं।
- होम लोन , रिनोवेशन लोन आदि लेने में आसानी।
- जनरल पावर ऑफ अटर्नी के मामले में मूल लीज होल्डर की मौत के बाद पीओए खत्म होने का डर नहीं।
- ज्यादातर बैंक और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां लीज होल्ड की तुलना में फ्री होल्ड प्रॉपर्टी पर लोन देना ज्यादा पसंद करते हैं।
- प्रॉपर्टी खरीदने से पहले डीलर या बिल्डर से टाइटल के कागज जरूर मांगे। देख लें कि प्रॉपर्टी लीज होल्ड है या फ्री होल्ड। फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के लिए रजिस्टर्ड कन्वेंस या सेल डीड होना जरूरी है , जबकि लीज होल्ड प्रॉपर्टी के मामले में लीज डीड , जनरल पावर ऑफ अटर्नी जैसे कागज दिखाए जाएंगे। 
प्रॉपर्टी के मार्केट रेट में इजाफा , जिसका काफी फायदा रीसेल में मिल सकता है।
प्रॉपर्टी का ट्रांसेक्शन-
 जनरल पावर ऑफ अटर्नी से डील की जाए या कन्वेंस या सेल डीड के जरिए प्रॉपर्टी का ट्रांसेक्शन , सभी पर लगभग एक जैसी ही स्टैंप ड्यूटी चुकानी पड़ती है।

 प्रॉपर्टी ट्रासंफर-
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी को कभी भी तीसरे पक्ष को बेचा जा सकता है। इस पर कोई रोक नहीं होती। इसके लिए नए खरीदार के साथ सेल डीड साइन करके उसे सब रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर्ड कराना होगा।

 प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन-
इस तरह की डील कन्वेंस या सेल डीड के जरिए पूरी की जाती है। इसके लिए संबंधित राज्य में लागू स्टैंप ड्यूटी चुकाकर डीड को सब रजिस्ट्रार के ऑफिस में रजिस्टर्ड कराया जाता है। इसके बाद प्रॉपर्टी बेचने वाले का उस पर किसी तरह का कोई अधिकार बाकी नहीं रह जाता। Via - Vijay Trivedi

ग्रेटर नोएडा ------>      कोर्ट में 28 गांवों की सुनवाई पूरी
नोएडा एक्सटेंशन समेत अन्य गांवों में जमीन अधिग्रहण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 28 गांवों की सुनवाई पूरी कर ली है। बुधवार को कोर्ट में छह गांवों की सुनवाई हुई। उम्मीद है कि गुरुवार तक सभी गांवों की सुनवाई पूरी हो जाएगी। इसके बाद नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे के गांवों की सुनवाई चलेगी। नोएडा एक्सटेंशन समेत ग्रेटर नोएडा के 40 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट की बड़ी बैंच 12 सितंबर से लगातार मामले की सुनवाई कर रही है। (Vijay Trivedi)

The purpose of increasing the FAR of group housing land in Greater Noida is to enable the building of smaller and more affordable houses, which are currently the need, rather than bigger units," said a GNIDA official
The move is seen as a bid to help developers recover from the burden of a three-fold hike in land rates announced by GNIDA in the past few months..---(Vijay Trivedi)

When property generates income in the form of capital gains. However, you need to make the right investments to get any tax benefits on it. When you sell a property, you either earn a short- (if held for less than three years) or long-term (if held for over three years) capital gains.
Long-term capitals gains are taxed at 20.6 per cent after indexation. You are taxed at 10 per cent without indexation only in the case of financial assets - mutual funds and shares. Indexation helps you inflation-adjust the cost. Or, indexation facto in inflation during the holding period by adjusting the cost of acquisition of the property upwards, thereby, bringing down the tax liability. For instance, the value of rupee ten years ago wasn't the same as it is today due to inflation. So, if you are asked to pay tax on your profits derived from reducing actual cost from the sale proceeds, it would be unfair. Reason: The sale proceeds are derived from the current value of rupee whereas you paid as per the value ten years ago.
The Income Tax (I-T) Department releases the Cost Inflation Index (CII) each financial year. For calculating capital gains, the cost should be multiplied by CII of the year of sale and divided by the CII of the year of property purchase. This essentially adjusts or inflates the cost to current levels reducing the capital gains. Say a property was bought in the financial year (FY) 2000-01 for Rs 50 lakh. The same is being sold now for 2 crore. A simple subtraction would show a long-term capital gains of Rs 1.50 crore.
On adjusting for inflation the capital gains is Rs 1.03 crore. The CII for FY 00-01 was 406 and for the current year is 785.
If the cost is adjusted with the ratio, the revised cost is Rs 97 lakh, bringing the capital gains down to Rs 1.03 crore. Your net tax saving = Rs 9.6 lakh (20.6 per cent). via- BS (Vijay Trivedi)

अथॉरिटी चेयरमैन व सीईओ बलविंदर कुमार ने बुधवार को सेक्टर- 62, 63, 64 आदि सेक्टरों का दौरा कर खाली प्लाटों की तत्काल बाउंड्री कराने का निर्देश दिया। एक साल के दौरान हुए अतिक्रमण की सूची संबंधित इंजीनियरों को देने को कहा गया है। उधर, अथॉरिटी के सचिव हरीश चंद्रा ने बुधवार को असगरपुर गांव का सर्वे किया। गुरुवार को सोहरखा गांव का सर्वे किया जाएगा। जबकि शुक्रवार को कोंडली बांगर के सर्वे के दौरान चेयरमैन खुद मौजूद रहेंगे।

चेयरमैन ने बताया कि सेक्टर- 62, 63 और 64 में काफी भूखंड खाली पड़े हैं। जिन पर कबाडि़यों के कब्जे की शिकायतों के चलते अब वहां पर अथॉरिटी द्वारा बाउंड्रीवॉल बनवाई जाएगी। बाउंड्रीवॉल बनाने की कीमत को बेचने के समय जोड़ तक कास्ट निर्धारण किया जाएगा। इंजीनियरों से एक साल के अंदर बढ़े अतिक्रमण की रिपोर्ट मांगी गई है। सेक्टरों में हाल ही बसी झुग्गियों के बारे में भी रिपोर्ट तलब की गई है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि असगरपुर गांव का सर्वे कर सूची बनाई जा रही है। इसके आधार पर आबादी तय कर 5 पर्सेंट की सूची तैयार की जाएगी।

किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर 23 सितंबर को नोएडा अथॉरिटी के घेराव की घोषणा करने वाली किसान बचाओ संघर्ष समिति बुलंद इरादों के साथ अपने कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटी हुई है। समिति से जुड़े सदस्यों ने बुधवार को मंगरौली, छपरौली, असगरपुर, बख्तावरपुर, सादूपुर, सुलतानपुर, नंगली बाजिदपुर, रायपुर, गढ़ी शहदरा, मोहियापुर, सदरपुर, झुंडपुरा, नंगली नंगला और दल्लूपुरा गांव का दौरा किया।

समिति के अध्यक्ष रघुराज सिंह के नेतृत्व में चलाए गए इस जनसंपर्क अभियान में लोगों ने बड़ी संख्या में अपनी भागीदारी की। ग्रामीणों को संबोधित करते हुए रघुराज सिंह ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश को लूटा था। देश की आजादी के बाद अब वही काम नोएडा अथॉरिटी करने में लगी हुई है। फर्क केवल इतना है कि पहले इस लूट का हिस्सा अंग्रेजों में बंटता था, अब यह हिस्सा बिल्डर, राजनेताओं और उद्योगपतियों की जेबों में जा रहा है। अथॉरिटी ने इंडस्ट्री के नाम पर छीनी गई जमीनों को अंडरटेबल मनी लेकर बिल्डरों को दे दिया, जिससे अफसर और बिल्डर तो मालामाल हो गए लेकिन देश का अन्नदाता किसान पहले से ज्यादा बदहाल हो गया।  ..... Source - Nav Bharat Times....

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने ग्रुप हाउसिंग बिल्डिंगों का एफएआर (फ्लोर एरिया रेसियो) 2.75 फीसदी से बढ़ा कर 3.50 फीसदी कर दिया है। इसका सबसे ज्यादा फायदा नोएडा एक्सटेंशन में किसानों के आंदोलन से जूझ रहे बिल्डरों को मिलेगा। एफएआर बढ़ने से बिल्डरों के फ्लैटों की संख्या डेढ़ गुना बढ़ जाएगी। प्राधिकरण ने दो सितंबर को हुई 90वीं बोर्ड बैठक में भवन नियमावली में संशोधन किया था। बुधवार को संशोधित भवन नियमावली के बारे में प्राधिकरण ने 15 दिन के अंदर लोगों की आपत्ति व सुझाव मांगा है। इसके बाद संशोधित भवन नियमावली लागू हो जाएगी।
करीब चार साल पूर्व ग्रेटर नोएडा में ग्रुप हाउसिंग बिल्डिंगों का एफएआर 1.75 था। दो साल पहले इसे बढ़ा कर 2.75 फीसदी कर दिया गया था। चार साल के अंदर प्राधिकरण ने तीसरी बार एफएआर बढ़ा कर 3.50 फीसदी कर दिया। संशोधित भवन नियमावली ग्रुप हाउसिंग के नए बिल्डिंगों पर लागू होगी, पुराने बिल्डर भी इसका फायदा उठा सकते हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए प्राधिकरण से अनुमति लेकर कुछ चार्ज देना पड़ेगा। चार्ज कितना पड़ेगा, इसका निर्णय अब तक नहीं हुआ है। देखा जाए तो इसका सबसे ज्यादा नोएडा एक्सटेंशन के बिल्डरों को होगा। वहां बिल्डरों ने अभी निर्माण कार्य शुरू ही किया था कि जमीन अधिग्रहण का विवाद कोर्ट में चला गया। बिल्डरों का निर्माण कार्य बंद हो गया है, इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ है। एफएआर बढ़ने से बिल्डरों के फ्लैटों की संख्या डेढ़ गुना बढ़ जाएगी। बिल्डर नए दर पर फ्लैटों को बेच कर हुए नुकसान का भरपाई कर सकेंगे। प्राधिकरण ने सुरक्षा के लिहाज से आवासीय, संस्थागत, औद्योगिक भवनों के चारदीवारी की ऊंचाई भी बढ़ा दी है। आवासीय भवनों में चारदीवारी की ऊंचाई 2.4 मीटर कर दिया गया है, पहले 1.9 मीटर था। इसी तरह संस्थागत व औद्योगिक भवनों के चारदीवारी की ऊंचाई बढ़ाई गई है।  ...... Source - Jagran .....

नोएडा एक्सटेंशन समेत अन्य गांवों में जमीन अधिग्रहण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 28 गांवों की सुनवाई पूरी कर ली है। बुधवार को कोर्ट में छह गांवों की सुनवाई हुई। उम्मीद है कि बृहस्पतिवार तक सभी गांवों की सुनवाई पूरी हो जाएगी। इसके बाद नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे के गांवों की सुनवाई चलेगी।
नोएडा एक्सटेंशन समेत ग्रेटर नोएडा के 40 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी बेंच 12 सितंबर से लगातार मामले की सुनवाई कर रहा है। कोर्ट अब तक 28 गांवों की सुनवाई कर चुका है। किसानों के वकील मुकेश रावल ने बताया कि बुधवार को कोर्ट में हैबतपुर, चिपियाना बुजुर्ग, बिसरख जलालपुर, रिठौरी, इटैड़ा व लुक्सर गांव की सुनवाई हुई। इसदौरान प्राधिकरण ने गांव वार की जमीन अधिग्रहण की पूरी जानकारी, भूमि परिवर्तन, किस उद्देश्य से जमीन का अधिग्रहण हुआ, जिस उद्देश्य से अधिग्रहण हुआ, उसका कितना आवंटन हुआ और कितनी जमीन अभी खाली पड़ी हुई है। इसकी पूरी जानकारी सोमवार तक कोर्ट में देने की बात कही है। उन्होंने बताया कि ग्रेटर नोएडा के शेष गांवों की सुनवाई बृहस्पतिवार को होगी। इसके बाद नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे के गांवों की सुनवाई होगी। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण क्षेत्र के 69 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ याचिका डाल रखी है। ....... Source : Dainik Jagran .....

जमीन अधिग्रहण के बदले मिल रहे मुआवजे के चेक समय पर न देने और चेक देते समय रिश्वत मांगे जाने से गुस्साए दर्जनांे गांवांे के किसानों ने बीकेयू पदाधिकारियांे के साथ यमुना अथॉरिटी के एडीएम लैंड दफ्तर का घेराव किया। किसानांे ने एडीएम लैंड को दफ्तर में बंद कर दिया, जबकि तहसीलदार और नायब तहसीलदार को घेरकर बाहर अपने बीच बैठा लिया। करीब ढाई घंटे तक बंधक बने रहने के बाद एडीएम लैंड यमुना अथॉरिटी ने घेराव कर रहे बीकेयू पदाधिकारी और किसानांे को वार्ता करने के लिए बुलाया। लेकिन किसानांे ने यह कहकर साफ इंकार कर दिया कि बात करनी है तो किसानों के बीच आकर करें।

एडीएम लैंड अरविंद कुमार किसानों के बीच पहंुचे और रिश्वत मांगने वाले अफसर और बाबूओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने व 15 दिनों में किसानांे को मुआवजे के चेक दिए जाने का आश्वासन दिया। इसके बाद बीकेयू पदाधिकारी किसानांे के साथ बीटा -2 स्थित यमुना अथॉरिटी दफ्तर पहंुचे। यहां किसानांे की 20 सूत्रीय मांगांे से संबधित ज्ञापन सौंपा, जिसमें तीन अथॉरिटी के किसानांे को पतवाड़ी के बराबर मुआवजा और आठ प्रतिशत आबादी, पुश्तैनी और गैर पुश्तैनी का भेद समाप्त करने व पुर्नवास नीति साल 1997 से लागू करने की मांगें शामिल थीं।

सेक्टर अल्फा-2 स्थित यमुना अथॉरिटी एडीमए लैंड दफ्तर पहंुचने वाले यमुना अथॉरिटी एरिया के गांव भटटा पारसौल, रौनीजा, रीलखा, मुतैना, धनौरी, महमूदपुर समेत दर्जनांे गांवांे के किसानों का नेतृत्व बीकेयू के जिलाध्यक्ष अजयपाल शर्मा कर रहे थे। अजयपाल शर्मा ने बताया कि यमुना अथॉरिटी ने किसानों का मुआवजा 35 रुपये बढ़ाया है। किसान बढे़ हुए मुआवजे की फाइल तैयार करने और चेक देने पर रिश्वत मांगते हंै। बगैर रिश्वत लिए मुआवजे के चेक नहीं दिए जाते हैं। आरोप है कि एडीएम लैंड दफ्तर में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। किसान नेता अनिल कसाना ने कहा कि यमुना अथॉरिटी एडीएम लैंड मंे फैले भ्रष्टाचार से किसान परेशान हैं। किसानांे से मुआवजे की फाइल तैयार करने के नाम पर घूस ली जाती है। जो किसान घूस नहीं देता है, उसकी फाइल मंे कमियां बताकर रोक दी जाती हैं। किसान मुआवजे के चेक के लिए चक्कर लगाता रहता है। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हुआ तो बीकेयू दफ्तर को सील कर देगी। एडीएम लैंड को दफ्तर में बंद करने और तहसीलदार और नायब तहसीलदार को अपने बीच बंधक बनाने वालांे में राजीव मलिक, प्रमोद गुर्जर, चंद्रपाल नागर, मास्टर श्यौराज सिंह, महेश रावल आदि शामिल थे। 

source : NBT

.......................One Is Not Poor If One Spends Rs 26 A Day
The Planning Commission in India either appears to be completely cut off from day-to-day inflation in real life, or is deliberately trying to act crazy.
On Tuesday, the Planning Commission told the Supreme Court that anyone spending more than Rs 965 per month in urban India and Rs 781 in rural India will be deemed not to be poor.
Updating the poverty line cut-off figures, the commission told the court that those spending in excess of Rs 32 a day in urban areas or Rs 26 a day in villages will no longer be eligible to draw benefits of central and state government welfare schemes meant for those living below the poverty line.
According to the new criterion suggested by the planners, if a family of four in Mumbai, Delhi, Bangalore or Chennai is spending anything more than Rs 3,860 per month on its members, it would not be considered poor.
It's a definition that many would find ridiculously unrealistic, comments Times of India.
Not surprisingly, the new above the poverty line definition has already created outrage among activists, who feel it is just a ploy to artificially depress the number of poor in India.
The plan panel said these were provisional figures based on the Tendulkar committee report updated for current prices by taking account of the Consumer Price Index for industrial and agricultural workers.
The Times of India report broke down the overall monthly figure for urban areas and used the CPI for industrial workers along with the Tendulkar report figures to see what these numbers translate into and how much the Planning Commission believes is enough to spend on essential items so as not to be deemed poor.
The Planning Commission suggests that spending Rs 5.5 on cereals per day is good enough to keep people healthy.
Similarly, a daily spend of Rs 1.02 on pulses, Rs 2.33 on milk and Rs 1.55 on edible oil should be enough to provide adequate nutrition and keep people above the poverty line without the need of subsidized rations from the government.
It further suggests that just Rs 1.95 on vegetables a day would be adequate. A bit more, and one might end up outside the social security net.
People should be spending less than 44 paise on fruits, 70 paise on sugar, 78 paise on salt and spices and another Rs 1.51 on other foods per day to qualify for the BPL list and for subsidy under various government schemes.
A person using more than Rs 3.75 per day on fuel to run the kitchen is doing well as per these figures.
Forget about the fuel price hike and sky-rocketing rents, if anyone living in the city is spending over Rs 49.10 a month on rent and conveyance, he or she could miss out on the Below Poverty Line tag.
As for healthcare, according to the Planning Commission, Rs 39.70 per month is sufficient to stay healthy.
On education, the plan panel feels those spending 99 paise a day or Rs 29.60 a month in cities are doing well enough not to need any help.
Similarly, one could be considered not poor if he or she spends more than Rs 61.30 a month on clothing, Rs 9.6 on footwear and another Rs 28.80 on other personal items.
The monthly cut-off given by the Planning Commission before the apex court was broken down using the Consumer Price Index of Industrial Workers for 2010-11 and the breakdown given in Annexure E of the Tendulkar report of expenditure calculated at 2004-05 prices.
As for healthcare,Rs 39.70 per month is felt to be sufficient to stay healthy,believes the Planning Commission.On education,the plan panel feels those spending 99 paisa a day or Rs 29.60 a month in cities are doing well enough not to need any help.
The new tentative BPL criteria was worked out by the Planning Commission and approved by the Prime Minister's office before the government's affidavit was submitted before the Supreme Court.
The plan panel said the final poverty line criteria would be available after the completion of the NSSO (National Sample Survey Organisation) survey of 2011-12.
The Montek Singh Ahluwalia-headed Planning Commission had drawn flak from the apex court which, on May 14, took exception to the poverty line definition which initially said anyone spending more than Rs 20 in urban areas and Rs 15 in rural areas should not be considered poor.
"The Planning Commission may revise the norms of per capita amount looking to the price index of May 2011 or any other subsequent dates," the court had said. So, the planners have now given a revised figure of Rs 32 for urban areas and Rs 26 for poor areas.
In their affidavit, the planners have defended their definition of the poverty line and not revised the norms, but merely updated them with the CPI for the current year.
The affidavit says, "The recommended poverty lines ensure the adequacy of actual private expenditure per capita near the poverty lines on food, education and health and the actual calories consumed are close to the revised calorie intake norm for urban areas and higher than the norm in rural areas."

Source : India TV News....

नोएडा , ग्रेटर नोएडा और यमुना अथॉरिटी एरिया के करीब 69 गंावों के किसानांे की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाई कोर्ट में दी गई याचिकाओं पर मंगलवार (20.09.2011) को फिर से सुनवाई शुरू हो गई। सबसे पहले यूपी की सीएम के पैतृक गांव बादलपुर के किसानांे की याचिकाआंे पर सुनवाई हुई। अथॉरिटी की ओर से काउंटर दाखिल किए जाने की वजह से बादलपुर की सुनवाई स्थगित कर दी गई। बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

किसानों का पक्ष रख रहे एडवोकेट जैदी ने कोर्ट को बताया कि बादलपुर के किसानों की जमीन अर्जेंसी क्लॉज लगाकर अधिग्रहीत की गई थी। अब यहां इंडस्ट्री के बजाय दो पार्क और हेलिपैड बन रहा है। अथॉरिटी की ओर से काउंटर फाइल दाखिल करने की वजह से बादलपुर को छोड़कर बाकी गांवों की सुनवाई पूरी हो गई।

किसानांे के वकील पंकज दूबे और प्रमेंद्र भाटी ने बताया कि कि अब तक 22 गांवों की सुनवाई पूरी हो चुकी है। मंगलवार को बादलपुर के बाद पाली , डाढा , ऐमनाबाद , बिरोड़ा , चूहड़पुर , सादौपुर , घरबरा , छपरौला , खैरपुर , अजायबपुर , नामौली , जैतपुर आदि गांवांे की पर सुनवाई हुई। बड़ी बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। Via- NBT (Vijay Trivedi)

 ............... No End In Sight For Abadi Land Row

After a day of heavy-duty negotiations between the Noida Authority and farmer leaders on Monday, they still do not seem to have arrived at a compromise on the issue of abadi (residential) land regularisation. The farmers have said that no agreement has been reached in this regard, and their agitation planned for September 21 would continue.
However, senior officials of the Noida Authority presented a different picture, stating that there was consensus on most issues that the farmers had raised, with only one or two needing further negotiations.
The sticking points between the two sides pertain to regularisation of abadi land, including commercial establishments, the delay in handing over developed plots, and a land dispute in Sorkha village. On Saturday, the Noida Authority had released a list of 1,095 farmers from 12 villages whose abadi land would be regularised, and would be given 5 per cent developed plots.
Mahinder Awana, spokesperson of the Kisan Sangharsh Samiti, said, "Only a small part of the abadi land has been regularised. Also, some of us have shops on our abadi land. We want them to be regularised without any fee, but the Authority says that we would only get them on lease. We want them to be given to us, freehold. It was part of our agreement on July 30, due to which we stopped agitating." Via- Vijay Trivedi

डुअल रेट होम वाली होम लोन स्कीम फिर से वापस आ रही हैं। हालांकि, ये पुरानी स्कीम से कुछ अलग हैं। आईसीआईसीआई बैंक ने शुरुआती एक या दो साल तक फिक्स्ड रेट वाले होम लोन प्रॉडक्ट लॉन्च कर इसका मैदान तैयार कर दिया है। बैंक पहले साल के लिए होम लोन पर 10.5 फीसदी और 11.5 फीसदी के बीच ब्याज वसूलेगा और दूसरे साल में 10.75 फीसदी से 11.75 फीसदी के बीच ब्याज लिया जाएगा। ब्याज दरों में यह अंतर कर्ज की रकम पर निर्भर करेगा।

पिछले सप्ताह एचडीएफसी ने भी फिक्स्ड और फ्लोटिंग दरों के मिश्रण वाला होम लोन प्रॉडक्ट लॉन्च किया है। एचडीएफसी पहले तीन साल के लिए 10.75 से 11.75 फीसदी, या फिर पांच साल के लिए 11.25 फीसदी से 11.75 फीसदी के बीच ब्याज लेगा। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस भी 'न्यू एडवांटेज 5' स्कीम लॉन्च कर इस खेल में शामिल हो गई है। यह प्रॉडक्ट आपको पहले 5 साल के लिए फिक्स्ड ब्याज दर ऑफर कर रहा है, उसके बाद आपको फ्लोटिंग दरों पर ब्याज देना होगा। एलआईसी हाउसिंग पहले 5 साल के लिए 11.15 फीसदी से 11.65 फीसदी तक ब्याज लेगी।

इस तरह के हाइब्रिड लोन प्रॉडक्ट पहले कुछ साल के लिए तयशुदा दरों पर ब्याज वसूलेंगे और उसके बाद ये बैंक की बेंचमार्क दरों के मुताबिक फ्लोटिंग रेट पर ब्याज लेंगे। अब यह समझना होगा कि कुछ समय पहले बंद किए टीजर लोन प्रॉडक्ट से ये नए ऑफर किस तरह से अलग हैं। जानकारों का कहना है कि जब ब्याज दरें अपने लगभग 'पीक' पर पहुंच चुकी हैं, तब इस तरह के हाइब्रिड लोन प्रॉडक्ट को लॉन्च किया गया है। वहीं टीजर लोन के तहत कर्ज लेने वाले लोगों को शुरुआती सालों में बाजार में उपलब्ध ब्याज दरों से कम दरों पर कर्ज का भुगतान करना होता था। टीजर लोन के तहत शुरुआती सालों में कम दरों पर होम लोन ऑफर किया गया था। अब बड़ा सवाल यह है कि इन उत्पादों का क्या मतलब है?

एचडीएफसी की मैनेजिंग डायरेक्टर रेणु सूद कर्णाड का कहना है, 'कुछ ग्राहक फिक्स्ड दरों पर कर्ज लेने में रुचि दिखाते हैं। सामान्य दरों की तुलना में फिक्स्ड लोन के कम से कम 100 बेसिस अंक महंगा होने के बावजूद ऐसे लोन में ग्राहक रुचि दिखाते रहे हैं।'

लेकिन, जब ब्याज दरों में अब गिरावट का दौर देखने को मिलता है, तब क्या आपको ऊंची दरों पर कर्ज लेना चाहिए? क्या आपको फिक्स्ड लोन के लिए अधिक भुगतान करने का कोई मतलब बनता है?

यह टीजर प्रॉडक्ट नहीं है

टीजर लोन के तहत आने वाले कर्ज के लिए ग्राहकों को कुछ महीने या साल के लिए सामान्य होम लोन की ब्याज दरों की तुलना में कम दर पर भुगतान करना होता है। अपना पैसा के सीईओ हर्ष रुंगटा का कहना है, 'नई स्कीम में फ्लोटिंग दरों की तुलना में किसी तरह की राहत नहीं दी जा रही है। लंबी अवधि के लिए फिक्सड विकल्प में शामिल होने से ग्राहकों को फ्लोटिंग दरों की तुलना में प्रीमियम पर भुगतान करना होगा। कुछ सरकारी बैंक भी ग्राहकों को फ्लोटिंग दर पर होम लोन को स्थानांतरित करने से पहले कुछ समय के लिए फिक्स्ड दर पर ब्याज वसूलते हैं। ये नए ऑफर भी कुछ इसी तर्ज पर तैयार किए गए हैं।'

क्या ब्याज दरें अपने उच्चतम स्तर पर हैं?

यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में आपको जरूर विचार करना चाहिए? अगर ब्याज दरों में मौजूदा स्तर से कोई भी गिरावट देखी जाती है, तो इसका सीधा नुकसान इन नए प्रॉडक्ट के तहत कर्ज लेने वाले ग्राहकों को होगा। कर्णाड का कहना है कि ब्याज दरों का आगे क्या रुख रहेगा इस पर कोई भी भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। पिछले छह महीने में कई विशेषज्ञों ने ब्याज दरों के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाने की बात कही है। लेकिन इस दौरान आरबीआई 125 बेसिस अंकों की बढ़ोतरी कर चुका है।' निश्चित तौर पर ब्याज दरों को लेकर पूर्वानुमान करना मुश्किल है, लेकिन अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्तर से अब बहुत ऊपर जाने की गुंजाइश कम है।

पराग पारेख फाइनैंशल अडवाइजरी सर्विसेस के सीएफपी और वाइस प्रेसिडेंट जयंत आर पई का कहना है, 'यह लगभग आम राय है कि ब्याज दर अपने उच्चतम स्तर के आस-पास ही है। अगर इस सोच के साथ आगे बढ़ते हैं, तब डुअल लोन रेट वाले प्रॉडक्ट में रुचि नहीं लेना चाहिए। हालांकि, कई बार पूर्वानुमान लगाना आसान नहीं होता है। ऐसे में, मेरा मानना है कि किसी भी ग्राहक को अपने मनोवैज्ञानिक नजरिए को ध्यान में रखकर कर्ज के विकल्पों के बारे में विचार करना चाहिए। उनकी प्राथमिकता फिक्स्ड है या फ्लोटिंग, यह उनको तय करना चाहिए।'

क्या आपको डुअल लोन रेट का विकल्प चुनना चाहिए?

लैडर 7 फाइनैंशल अडवाइजरीज के सर्टिफाइड फाइनैंशल प्लानर सुरेश सदगोपन का कहना है, 'इस तरह की स्कीमें पहले आकर्षक थीं, क्योंकि उस समय ब्याज दरें ऊंचे स्तरों पर थीं। इस तरह की स्कीमों में कर्ज के शुरुआती सालों के दौरान कम दरों पर ब्याज की पेशकश की गई। शुरुआती दौर में जब ब्याज दर फिक्स्ड थी, तब उन्होंने ईएमआई के मामले में भी ग्राहकों को सहूलियत दीं। अब स्थितियां बदल गई हैं और इस तरह के लोन प्रोडक्ट का कोई मतलब नहीं है।' दूसरी बात, इस तरह के प्रॉडक्ट के तहत ब्याज दर फ्लोटिंग दरों से अधिक है।

रुंगटा का कहना है, 'यह भी साफ नहीं है कि फ्लोटिंग दरों पर प्री-पेमेंट शुल्क नहीं लेने संबंधी नियम इस तरह के डुअल रेट वाले लोन प्रॉडक्ट पर लागू होंगे या नहीं। इसलिए सभी दृष्टिकोण से देखा जाए तो आप इन स्कीमो के झांसे में नहीं आएं और बेहतर फ्लोटिंग रेट वाली स्कीमों पर ही ध्यान दें।' हालांकि, अगर आप लंबी अवधि के लिए होम लोन लेना चाहते हैं और आप फिक्स्ड कंपोनेंट के बदले प्रीमियम भुगतान करने को लेकर चिंतित नहीं हैं, तब डुअल रेट वाले होम लोन प्रोडक्ट ले सकते हैं। पई कहते हैं, 'अगर कोई ग्राहक 10 साल से अधिक समय के लिए कर्ज लेना चाहता है, तब उसके लिए यह बड़ी दिक्कत नहीं है। उनकी कुल अवधि में फिक्स्ड रेट का हिस्सा थोड़ा ही होगा। लेकिन अगर कोई ग्राहक इससे कम अवधि के लिए कर्ज लेना चाहता है, तब उसके लिए यह उचित प्रॉडक्ट नहीं होगा।' --NBT--Vijay Trivedi

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एक्सटेंशन में बिल्डरों के दफ्तर में सन्नाटा पसरा है। निर्माण कार्य कर रहे ठेकेदारों को डर सता रहा है कि कहीं उनका पैसा फंस न जाए। मजदूर भी अपना सामान समेटकर चले गए हैं। पिछले दिनों तमाम दिक्कतों के बाद भी बिल्डर निर्माण कार्य करा रहे थे। ताकि निवेशक मौके पर जाएं तो उन्हें लगे कि जहां पर पैसा लगाया है, वहां पर फ्लैटों का निर्माण कार्य चल रहा है। हालांकि, निवेशक अभी भी अपना पैसा वापस लेने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। जमीन की कीमत पहले 11500 रुपये प्रति वर्ग मीटर थी, अब 17300 रुपये प्रति वर्ग मीटर हो चुकी है। इसके अलावा बिल्डरों से ही मुआवजा की बढ़ी हुई दर वसूली जा रही है। इसका सीधा प्रभाव फ्लैटों की कीमतों पर पड़ेगा। फ्लैट करीब दोगुने महंगे हो जाएंगे। एक्सटेंशन में करीब 2.50 लाख फ्लैट बनने हैं। फिलहाल 20 फीसदी तक ही बुक हुए हैं।
दरअसल, निवेशक यह जानते हैं कि उन्होंने जो फ्लैट बुक कर रखे हैं, भविष्य में उतनी कीमत पर दोबारा फ्लैट नहीं मिलेगा। इसका कारण है कि शाहबेरी में नए सिरे से जमीन अधिग्रहण का काम होगा। पहले की अपेक्षा 30 फीसदी बढ़ी हुई दर पर बिल्डरों को जमीन मिलेगी। उसका पैसा निवेशकों से ही लिया जाएगा, लिहाजा फ्लैटों के दाम बढ़ जाएंगे। इसी तरह पतवाड़ी में बिल्डरों से अतिरिक्त 550 रुपये प्रति वर्ग मीटर प्राधिकरण ले रहा है। बिल्डर भी फ्लैटों की कीमत बढ़ाएंगे। इसके अलावा अन्य बिल्डरों को भी अतिरिक्त भार देना पड़ रहा है, इसलिए वह फ्लैटों की कीमत बढ़ाकर अपना घाटा पूरा करेंगे। निर्माण कार्य रुकने से हुआ नुकसान, फ्लैटों के बनने में देरी, बैंक द्वारा बढ़ा हुआ ब्याज आदि कारणों से फ्लैटों की दोगुनी कीमत होनी निश्चित है। करीब दो माह पहले सुप्रीम कोर्ट ने गांव की 156.903 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण रद्द करके किसानों को वापस करने के निर्देश दिया था। कोर्ट का आदेश आते ही वहां के सात बिल्डरों ने काम को रोक दिया था। इसके बाद पतवाड़ी गांव की 589 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण प्रतिक्रिया को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। वहां पर 11 बिल्डरों को काम रोकना पड़ा।
हालांकि, बाद में कोर्ट ने सुलह का रास्ता बताया था। लेकिन अभी भी एक्सटेशन के भविष्य पर संशय बरकरार है। एक्सटेंशन के बिसरख, रोजा याकूबपुर, इटैड़ा, हैबतपुर, सैनी, मिलक लच्छी आदि गांव की जमीन पर छोटे बड़े करीब 50 बिल्डरों के प्रोजेक्ट हैं। वहां पर अब निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद है। यहां हजारों की संख्या में मजदूर लगे थे, अब दिखाई नहीं दे रहे हैं। सभी की निगाहें कोर्ट में चल रही सुनवाई पर अटकी हुई हैं।

ग्रेटर नोएडा नोएडा एक्सटेंशन समेत अन्य गांवों में जमीन अधिग्रहण मामले की हाई कोर्ट में मंगलवार से लगातार सुनवाई होगी। हाई कोर्ट ने अब तक दो दर्जन गांवों की सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई को लेकर प्राधिकरण के अधिकारी सोमवार शाम इलाहाबाद के लिए रवाना हो गए। मालूम हो कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण के 65 गांवों के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाई कोर्ट में 495 याचिकाएं दायर कर रखी हंै। इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी बैंच 12 सितंबर से एक-एक गांव करके लगातार सुनवाई कर रही है। शनिवार व रविवार को अवकाश होने की वजह से सुनवाई नहीं हुई। मंगलवार से कोर्ट ने अन्य गांवों की सुनवाई करने का निर्णय लिया है। नोएडा एक्सटेंशन के गांव पतवाड़ी समेत दो दर्जन गांवों के मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सभी गांवों की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट फैसला सुनाएगा। उम्मीद है कि सितंबर के अंतिम सप्ताह तक सभी गांवों की सुनवाई पूरी हो जाएगी। अपना पक्ष रखने के लिए प्राधिकरण के अधिकारी सोमवार शाम इलाहाबाद रवाना हो गए। किसान, बिल्डर व निवेशक भी अपना पक्ष रखने के लिए हाई कोर्ट के लिए रवाना हुए हैं। सीईओ से मिले कई गांवों के किसान : नोएडा एक्सटेंशन के पतवाड़ी, बिसरख, हैबतपुर व इटेड़ा गांव के किसानों ने सोमवार को सीईओ रमा रमन से मुलाकात की। किसानों ने कहा कि वे हाई कोर्ट में दाखिल याचिकाओं को वापस ले लेंगे, लेकिन पहले प्राधिकरण को किसानों की आबादी छोड़ने का शपथ पत्र देना होगा। किसानों की मांग पर प्राधिकरण गंभीरता से विचार कर रहा है। घोड़ी बछेड़ा गांव के किसानों ने भी सीईओ से मुलाकात की। किसानों ने आबादी अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए कहा कि वे बेघर होने की स्थिति में आ गए हैं। जमीन देने वालों की कमी नहीं : ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण क्षेत्र में एक तरफ किसान जमीन अधिग्रहण को हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं, दूसरी तरफ प्राधिकरण को जमीन देने वाले किसानों की संख्या भी कम नहीं है। दोनों जगह अनेक किसान खुद ही प्राधिकरण को जमीन देने के लिए आगे आ रहे हैं। पिछले छह माह में एक हजार से अधिक किसान प्राधिकरण के पक्ष में अपनी जमीन की सीधे रजिस्ट्री करा चुके हैं। करीब पांच सौ किसानों के आवेदन पत्र लंबित हैं। दस से पंद्रह दिन के अंदर प्राधिकरण इन पर निर्णय लेगा। ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण क्षेत्र में पिछले एक वर्ष से जमीन अधिग्रहण के विरोध में किसानों का आंदोलन चल रहा है। किसान प्राधिकरण पर जबरन जमीन अधिग्रहण का आरोप लगा रहे हैं। भट्टा-पारसौल समेत कई जगह प्रशासन व किसानों के बीच टकराव हो चुका है। किसानों का कहना है कि प्राधिकरण को वे अपनी जमीन नहीं देना चाहते। दूसरी तरफ यमुना प्राधिकरण क्षेत्र के मूंजखेड़ा, मिर्जापुर, रूस्तमपुर, रबूपुरा, अच्छेजा बुजुर्ग, ऊंची दनकौर, अट्टा गुजरान व ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के पल्ला, जुनपत, जारचा, धीर खेड़ा आदि एक दर्जन गांवों के करीब एक हजार किसान प्राधिकरण को करार नियमावली के तहत अपनी जमीन दे चुके हैं। इन किसानों की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया, बल्कि किसानों ने प्राधिकरण के पक्ष में सीधी रजिस्ट्री की है। । आबादी नियमावली पर मांगी आपत्ति : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे में आबादी नियमावली को मंजूर करने से पहले प्राधिकरण ने किसानों से आपत्ति मांगी है। बुधवार तक किसान अपने सुझाव व आपत्ति लिखित में दे सकते हैं। इसके बाद आपत्ति स्वीकार नहीं की जाएगी। बताया जाता है कि किसानों की आपत्तियों के निराकरण के बाद अगले सप्ताह आबादी नियमावली लागू कर दी जाएगी। डीसीईओ अखिलेश सिंह ने बताया कि प्राधिकरण ने इसके लिए बुधवार तक का समय निर्धारित किया है।- Via-DJ-Vijay Trivedi

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