Home Buyers Won't Be Burdened; Builders Offer To Pay More

Some good news has finally come for people who have spent their hard-earned money in the hope of owning a house in Noida Extension. Even as Allahabad high court began daily hearing in all Noida Extension land acquisition cases on Monday, the Confederation of Real Estate Developers' Association of India (CREDAI) has agreed to pay Greater Noida authority Rs 2,250 per sqm more for the land already allotted to builders. They have promised not to pass on the burden to the existing buyers.
Pankaj Bajaj, president of CREDAI-NCR, said, "There's no provision in the allotment agreement (between the authority and builders) which says the rate of allotment can be hiked. But in the interest of buyers, we're ready to absorb the burden."
The Greater Noida authority had said on September 6 that it will increase the price of land allotted to builders, who were told to pay Rs 2,250 per sqm more. The builders in turn had said they would pass on the burden (10% of the house cost) to flat buyers.
"We were not at fault. We bought land from the authority thinking the title was clean. We never knew the land was disputed and its ownership could be challenged. We're trying to make sure the already booked houses don't cost more," Bajaj said.
By ugesh sarkar

देश में सबसे तेज आर्थिक विकास के लिए बेशक इन दिनों गुजरात की तूती बोल रही हो लेकिन उससे कहीं अधिक विकास की क्षमता यूपी में है। अगर यूपी के संसाधनों का यही इस्तेमाल किया जाए तो उसे देश का सबसे धनी और विकसित राज्य बनते देर नहीं लगेगी। यह आकलन देश की अग्रणी उद्योग संस्था सीआईआई का है। संस्था ने यूपी के लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर पर चर्चा करने के लिए शुक्रवार को सेक्टर-18 स्थित एक होटल में कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। सीआईआई पदाधिकारी संकल्प शुक्ला ने बताया कि उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल के मामले में देश का चौथा और आबादी के मामले में सबसे बड़ा राज्य है। यूपी में देश का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क मौजूद है। देश के कुल राष्ट्रीय राजमार्गों में सबसे ज्यादा करीब 7 हजार किलोमीटर सड़क मार्ग यहीं से गुजरता है। सम्मेलन में बोलते हुए इंडिया सेंटर फाउंडेशन के विभव कांत उपाध्याय ने कहा कि बनारस से लेकर पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक गंगा नदी में छोटे जहाज चलाए जा सकते हैं। इन जहाजों से माल और सवारियां देश के दूसरे हिस्सों में भेजी जा सकती हैं। सड़क, रेल और हवाई मार्ग की तुलना में यह साधन सस्ता भी पड़ेगा और इसके उपयोग से बाकी तीनों संसाधनों पर बोझ भी घटेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अपने इन संसाधनों के इस्तेमाल के लिए पहल करनी चाहिए। कारपोरेट एडवाइजर मोनिका सूद ने कहा कि यूपी में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बिजली की कमी बड़ी दिक्कत है।

नोएडा अथॉरिटी ने 12 गांवों की आबादी नियमित कर 5 पर्सेंट जमीन का खाका तैयार कर लिया है। 12 गांवों की आबादी नियमित करने पर अथॉरिटी गांवों की करीब 2.81 लाख वर्ग मीटर जमीन छोड़ेगी, जबकि चिह्नित किसानों की अर्जित जमीन के सापेक्ष अथॉरिटी 5 पर्सेंट किसान कोटे के तहत करीब 5 लाख वर्ग मीटर जमीन अलॉट करेगी। इन गांवों में कमर्शल यूज वाली जमीन अभी शामिल नहीं की गई है। कमर्शल यूज वाली जमीन का नए सिरे से सर्वे कराया जाएगा। ऐसी जमीन पर अथॉरिटी कमर्शल वैल्यू के आधार पर अधिकार तय करेगी। हालांकि मूल निवासियों द्वारा कमर्शल इस्तेमाल करने पर रेट में छूट दी जाएगी, जबकि बाहरी लोगों को तय रेट पर चार्ज देना होगा।

अथॉरिटी चेयरमैन बलविंदर कुमार ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 12 गांवों की आबादी नियमित कर कुल 2,81,219.19 वर्ग मीटर जमीन छोड़ी जाएगी। लीज बैक के आधार पर इस जमीन को छोड़ने के बाद किसानों को 5 पर्सेंट कोटे की जमीन अलॉट की जाएगी। अर्जित जमीन के सापेक्ष 5,04,171 वर्ग मीटर अलॉट की जाएगी। उन्होंने बताया कि जिस आबादी को रेग्युलराइज किया गया है, उसमें कमर्शल इस्तेमाल में आने वाली भूमि को शामिल नहीं किया गया है। ऐसी जमीन का अलग से सर्वे कराया जाएगा, जिसके बाद मूल निवासियों द्वारा स्वयं काम करने पर रियायती दरों पर इस जमीन को छोड़ा जाएगा। वहीं, बाहरी लोगों द्वारा कारोबार करने पर कमर्शल फीस अथॉरिटी को देनी होगी। इसके लिए अलग से पॉलिसी तय की जाएगी। 

source  : NBT

जमीन अधिग्रहण मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रही। बड़ी बेंच ने रोजा याकूबपुर , तुस्याना , मुर्शदपुर , जैतपुर - वैशपुर और बादलपुर गांवों के किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने अथॉरिटी से पूछा कि अधिग्रहण के वक्त किसानों की आपत्तियां क्यों नहीं सुनी गईं। लगातार सुनवाई के चलते वकीलों ने कोर्ट से सोमवार की सुनवाई स्थगित करने की अपील की। अब अगली अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।

हाई कोर्ट में किसानों के वकील पंकज दूबे प्रमेंद्र भाटी ने बताया कि मंगलवार को सबसे पहले बादलपुर के किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई होगी। जैतपुर - वैशपुर गांव के किसानों के वकील मुकेश रावल ने बताया कि हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान बड़ी बेंच ने अथॉरिटी से पूछा की किसानों की जमीन अधिग्रहण करते समय उनकी आपत्तियां क्यों नहीं सुनी गईं। जो जमीन इंडस्ट्री लगाने के नाम पर अधिग्रहीत की गई , उसका लैंड यूज चेंज करके बिल्डरों को अलॉट कैसे कर दिया गया। बादलपुर गांव की होने वाली सुनवाई को लेकर किसान राजनैतिक दलों के नेता सक्रिय है। पंकज दूबे ने बताया कि बादलपुर मामले में यूपी गवर्नमेंट की ओर से काउंटर फाइल नहीं किया गया है। कोर्ट ने काउंटर फाइल करने का आदेश दिया है। 

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खरीद-बिक्री का खर्च जब कभी आप पुरानी प्रॉपर्टी बेचते हैं या नई प्रॉपर्टी खरीदने जाते हैं तो उस पर स्टैंप ड्यूटी , रियल्टी की कीमत आंकने की फीस , अप्रेजल फीस , कंस्ट्रक्शन की गुणवत्ता जांचने वाले और वकील की फीस आदि देनी होती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ये शुल्क कम नहीं होते। कभी-कभार खरीदने या बेचने वाला पक्ष आपसे लेन-देन के सभी शुल्क चुकाने को कहता है।

प्राधिकरण के खर्च- प्राधिकरण के कई प्रकार के खर्चे होते हैं जिसे फाइनैंस कराने की जरूरत होती है। इनमें रेग्युलराइजेशन शुल्क , भूमि के इस्तेमाल का कनवर्जन शुल्क , ट्रांसफर शुल्क , डिवेलपमेंट शुल्क , मैप शुल्क या दस्तावेजों के वेरिफिकेशन शुल्क आदि शामिल होते हैं।

बिचौलिए का कमीशन- घरेलू प्रॉपर्टी के लिए मौजूदा कमिशन लेन-देन की कीमत का 1-2 फीसदी चल रहा है। बातचीत के जरिए इसे कम कराया जा सकता है। इसमें तब और आसानी होती है जब आप एक ही ब्रोकर के जरिए प्रॉपर्टी खरीद और बेच रहे हों। बाजार के नियम और शर्तों के मुताबिक चलने पर आप घाटे में रह सकते हैं। यह बढ़िया रहेगा कि आप लेन-देन से पहले ही बिचौलिए का कमिशन तय कर लें।

पुरानी प्रॉपर्टी से जुड़े शुल्क- आपने देखा होगा कि सब्जियों को ताजा बनाए रखने के लिए 5-10 मिनट के अंतराल पर पानी का छिड़काव करता रहता है। इसी तरह बिक्री वाली प्रॉपर्टी का उचित रख-रखाव जरूरी है। अगर आप घरेलू प्रॉपर्टी बेचने जा रहे हैं तो इसकी मरम्मत और पेंटिंग कराने की जरूरत पड़ सकती है। इससे आपको बेहतर कीमत मिल सकती है।

पूर्वभुगतान शुल्क- अगर पुरानी प्रॉपर्टी आपने कर्ज लेकर खरीदी हुई है तो प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने से पहले उसका भुगतान करना जरूरी हो जाता है। लोन का पूर्वभुगतान शुल्क कर्ज की बकाया मूल राशि का 1 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक होता है।

होम इंश्योरेंस- यह महत्वपूर्ण होता है। नया घर खरीदने के साथ ही आपको हो इंश्योरेंस लेने की जरूरत होती है। इसकी लागत मकान के क्षेत्रफल , स्थान , घर के सामान और प्रॉपर्टी की कीमत पर निर्भर करती है।

मॉर्टगेज कवर- अगर नई प्रॉपर्टी लोन लेकर खरीद रहे हैं तो आपको अतिरिक्त जीवन बीमा कवर लेना चाहिए। अधिकतर मामलों में कर्जदाता चाहता है कि आप लोन के साथ ही एक बीमा पॉलिसी ले लें और प्रीमियम की राशि कर्ज की राशि में जोड़ दी जाती है। हालांकि , आपको इसकी जगह टर्म इंश्योरेंस कवर को तरजीह देनी चाहिए। टर्म इंश्योरेंस में कवर की राशि पुनर्भुगतान अवधि के दौरान यथावत बनी रहती है जबकि मॉर्टगेज इंश्योरेंस के मामले में मासिक किस्तों के भुगतान के साथ ही यह घटता जाता है।

नया लोन- नया लोन आप मौजूदा ब्याज दरों के आधार पर लेंगे। हो सकता है कि आपका पुराना लोन कम ब्याज दर पर लिया गया हो और अब ब्याज के खर्चे बढ़ गए हों।

इसके अलावा , लोन उपलब्ध कराने वाली सभी कंपनियां प्रोसेसिंग और डॉक्यूमेंटेशन के लिए एक तय शुल्क लेती हैं। कुछ कंपनियां आपसे मासिक किस्तों के अग्रिम भुगतान के लिए भी कहती हैं। इन खर्चों के लिए किसी व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए।

पार्किंग और अन्य खर्च- अगर खरीदी जाने वाली नई प्रॉपर्टी अपार्टमेंट या फ्लैट है तो आपको पार्किंग शुल्क के तौर पर सालाना या एकमुश्त राशि का भुगतान करना होता है।

यह शुल्क बिल्डिंग मेंटिनेंस निर्धारित करता है और यह पार्किंग की श्रेणी पर निर्भर करता है। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद नए घर में रहने की तैयारी करनी होती है जिसमें फर्निचर , पर्दे , इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि शामिल होते हैं। इस प्रकार के छोटे-छोटे खर्च जुड़ कर बड़ी राशि बन जाती है और हमारे घरेलू बजट पर भारी पड़ सकते हैं। इनकी व्यवस्था कर चलने में ही बुद्धिमानी है। 

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पुरुषार्थ आराधक।।
तमाम विवादों के बीच एक सवाल आज भी निवेशकों को सता रहा है कि क्या वाकई नोएडा एक्सटेंशन में आशियाने का सपना पूरा हो पाएगा। वर्तमान के तमाम समीकरणों पर गौर किया जाए, तो इसका सीधा सा जवाब है, हां। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर निगाह डालें, तो कोर्ट की मंशा भी किसानों के साथ आम निवेशक के हितों को बचाने की है। यह बात अब सार्वजनिक हो गई है कि किसानों को जमीन नहीं अतिरिक्त मुआवजा चाहिए।

इस विवाद में तीन पक्ष हैं, सरकार, किसान और बिल्डर। इन तीनों के बीच खींचतान में फंसा है आम निवेशक। लेकिन तीनों ही पक्ष नहीं चाहते कि निवेशक का पैसा इस फसाद का शिकार बने। वे सीधे आम आदमी का सपना नोएडा एक्सटेंशन में पूरा होते देखना चाहते हैं। तमाम पहलुओं पर गौर करें, तो सारा झगड़ा बड़े मुआवजे का है। यह मसला पॉलिटिकली मोटिवेटेड भी है। चूंकि यूपी में चुनाव नजदीक है लिहाजा कुछ तथाकथित किसान नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस मसले को अपनी ढाल बना रहे हैं।

अगर पुश्तैनी किसानों की यंग जेनरेशन के मन में झांका जाए, तो वे लोग आज अपने पुश्तैनी काम को नहीं करना चाहते। दबी जुबान में ही सही लेकिन तमाम किसानों को जमीन से ज्यादा मुआवजे की चिंता है। इसका उदाहरण हम शाहबेरी और पतवाड़ी में देख चुके हैं। शाहबेरी में भले ही किसानों ने कोर्ट में जंग जीत ली लेकिन क्या वे वाकई आज भी अपनी जमीन पर खेती कर रहे हैं। जमीन का एक बड़ा टुकड़ा अब उपजाऊ नहीं रहा हैं। जो बचा है, उसमें भी किसान खेती करने को तैयार नहीं हैं। इस समय नोएडा एक्सटेंशन भूमि अधिग्रहण मामला पॉजिटिव दिशा में जा रहा है। इसका श्रेय मूल रूप से ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन, बिल्डर्स बिरादरी और सांसद सुरेंद्र सिंह नागर को जाता है।

अगर बात करें पतवाड़ी की, तो यहां पर 90 फीसदी से ज्यादा किसान मुआवजा उठा चुके हैं। पतवाड़ी गांव के प्रधान रेशपाल सिंह बड़े मुआवजे की रकम पतवाड़ी किसानों को दिलाकर संतुष्ट हैं। रेशपाल नहीं चाहते कि जमीन विवाद में आम निवेशक का पैसा फंसा रहे। पतवाड़ी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आदेश भी इस ओर इशारा करता है कि इस मसले का हल केवल ठंडे दिमाग से बातचीत करने का है। कोर्ट नहीं नहीं चाहता कि बिल्डिंग के रूप में खड़े लाखों निवेशकों का सपना चकनाचूर हो।

ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी सीईओ रमा रमन के मुताबिक, पतवाड़ी गांव का मामला निबट चुका है। इस मसले में कोर्ट का निर्देश काफी सराहनीय रहा। 1400 में से 1100 से ज्यादा किसानों ने बड़े मुआवजे की रकम प्राप्त करके ऐफिडेविट जमा करा दिए है, जिन्हें बाद में कोर्ट में भी पेश किया जा चुका है। रमा रमन ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी की तर्ज पर नोएडा एक्सटेंशन के अंतर्गत आने वाले अन्य गांव भी अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं लेकिन फिलहाल सारा ध्यान पतवाड़ी के पैक्ट पर ही है। रमा रमन ने इशारा किया कि कोर्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर पतवाड़ी एक मॉडल बन सकता है, जिसके बाद अन्य गांवों से भी आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट किया जा सकता है। मालूम हो कि अन्य गांव मसलन इटैड़ा, रोजा, खैर पुर, देवला आदि गांव के किसान मुआवजे को लेकर अथॉरिटी से संपर्क स्थापित कर रहे हैं। ये किसान पतवाड़ी की तर्ज पर बढ़े मुआवजे की बात कर रहे हैं।

नहीं पड़ेगा असर निवेशक पर
सुपरटेक कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर आर के अरोड़ा ने बातचीत के दौरान बताया कि पतवाड़ी पैक्ट में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का काम सराहनीय रहा। पतवाड़ी पैक्ट से हजारों निवेशकों को राहत की सांस मिलेगी। वह कहते हैं कि हमारे निवेशकों का हित सर्वोपरि है, जिसके तहत वर्तमान निवेशकों पर इस पैक्ट का कोई बोझ नहीं बढ़ेगा। जिन शर्तों के साथ निवेशकों ने अपने फ्लैटों की बुकिंग कराई थी, उन्हीं शर्तों के तहत उन्हें फ्लैट मुहैया कराए जाएंगे। वहीं, आम्रपाली ग्रुप के सीएमडी अनिल शर्मा ने कहा कि निवेशकों को बिल्डर्स और अथॉरिटी के प्रयासों पर भरोसा है। पतवाड़ी की तर्ज पर अन्य गांव भी सेटलमेंट के लिए आगे आ रहे हैं। यह खबर आम निवेशक के लिए अच्छी है। हमने अपने ग्रुप और क्रेडाई की ओर से पहले ही घोषणा कर दी थी कि अतिरिक्त मुआवजे का बोझ भले ही बिल्डरों पर पड़े लेकिन इसका असर निवेशक पर नहीं पड़ेगा।

किसानों में मनी मैनेजमेंट का अभाव
तकरीबन आठ साल पहले एनएच 24 से सटे गाजियाबाद के तहत आने वाले गांवों में बिल्डरों ने सीधी किसानों से जमीन खरीदकर टाउनशिप लॉन्च की। इस विकास की इबारत को आगे लिखने के लिए बिल्डरों की नजर इस इलाके से सटे, ग्रेटर नोएडा के तहत आने वाले गांवों मसलन शाहबेरी, इटैड़ा, रोजा, जलालपुर, बिसरख आदि पर गई। लेकिन गाजियाबाद की तर्ज पर यहां बिल्डरों को सीधा जमीन खरीदने के लिए लाइसेंस नहीं आवंटित किए गए और सरकार ने खुद जमीन अधिग्रहित कर बिल्डरों को बेचना मुनासिब समझा।

अगर, तमाम पहलूओं पर गौर किया जाए, तो साल 2008 में यूपी सरकार ने नोएडा एक्सटेशन का भूमि अधिग्रहण शुरू किया था। इस दौरान किसानों को अच्छा खासा मुआवजा मिला था। कहावत है कि पैसे से पैसा बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है और यही बात यहां पर भी लागू हुई। मनी मैनेजमेंट के अभाव में किसान की तिजोरियां खाली होती चली गईं और एक मोड़ ऐसा आया कि वे खाली तिजोरियों के साथ अपने को ठगा महसूस करने लगे। अगर, सरकार मुआवजे के साथ किसानों को ध्यान में रखकर कोई पॉलिसी लाती तो शायद, यह विवाद इतना उग्र रूप नहीं ले सकता था। भले ही सरकार ने पतवाड़ी किसानों को दोबारा बड़ा मुआवजा दे दिया हो लेकिन ये सवाल आज भी बरकरार है कि बड़ा मुआवजा कितने दिनों तक किसानों की जेब की रौनक बना रहेगा। 
source : NBT

आबादी व्यवस्थापन विनियमावली के तहत प्राधिकरण ने एक हजार से ज्यादा किसानों को लाभ दे दिया है। शुक्रवार को चेयरमैन व सीईओ बलविंदर कुमार ने इसकी सूची जारी कर दी है। प्राधिकरण अब जल्द ही किसानों को विनियमितिकरण का पत्र जारी करेगा। वाणिज्यिक सर्वे पर भ्रम की स्थिति खत्म करने के लिए मार्केट के अनुसार नियमितिकरण शुल्क लगाने की बात कही जा रही है।
प्राधिकरण ने एक दर्जन गांवों की सूची शुक्रवार को जारी की है। इसके अनुसार करीब 1272 खातेदारों के लगभग 2063 परिवार लाभांवित होंगे। इनकी आबादी विनियमित करने के लिए प्राधिकरण को 281219.91 वर्गमीटर भूमि किसानों के पक्ष में बतौर आबादी नियमित करनी पड़ी है। इन किसानों को पांच फीसदी के भूखंड के रूप में प्राधिकरण जल्द ही 5,04,171 वर्गमीटर भूमि आवंटित करेगा। आबादी विनियमितिकरण का लाभ पाने वालों में बादौली-बांगर के 82, वाजिदपुर के 172, नगली-नगला के 28, शहदरा के 270, पर्थला-खंजरपुर के 169, सर्फाबाद के 13, सदरपुर के 225, बरौला के 44, होशियारपुर के 56 और आगाहपुर के 36 किसान शामिल हैं। चेयरमैन ने बताया कि इन किसानों को प्रस्तावित संशोधन के तहत ही विनियमितिकरण का लाभ दिया गया है। प्राधिकरण आबादी के रूप में नियमित करने वाली जमीन लीजबैक करेगा। इसके लिए 450 वर्गमीटर प्रति बालिक परिवार का मानक अपनाया गया है। इसके बाद भी कुछ मामलों में नियोजन विभाग के साथ मिलकर केस टू केस फैसला लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर किसान ने नियमित होने वाली जमीन का मुआवजा उठा लिया है तो वह उसे वापस करना होगा। पांच प्रतिशत का लाभ भी कुल अधिग्रहित जमीन से नियमित होने वाली भूमि को घटाकर दिया जाएगा। गांव में आबादी के लिए जो जमीन खाली छोड़ दी गई है, उसे सर्वे में शामिल नहीं किया गया है।

इसी तरह चेयरमैन ने बताया कि बिना सर्वे वाणिज्यिक गतिविधियों को नियमित नहीं किया जा सकता। सर्वे के बिना यह पता नहीं लग सकता है कि कितने मूल किसान हैं और कितने ऐसे व्यापारी हैं जिन्होंने बाहर से आकर यहां दुकानें अथवा वाणिज्यिक प्रतिष्ठान खरीद रखे हैं। किस वाणिज्यिक स्थल पर किसका कब्जा है यह जाने बिना सभी को लाभ देना संभव नहीं है। हालांकि उन्होंने फिर आश्वासन दिया कि मूल किसान की वाणिज्यिक गतिविधियां बेहद कम कीमत पर नियमित होंगी, जिसे वह वहन कर सकता हो। दुकानें नियमित करने से पहले वहां की मार्केट वैल्यू भी देखी जाएगी। जिन प्रतिष्ठानों पर बाहरी लोग काबिज हैं उनके लिए अलग दर लागू होगी, यह भी शहर की वर्तमान वाणिज्यिक दर से कम रहेगी। साथ ही चेयरमैन ने बताया कि वर्ष 1976 से 1997 तक के किसानों के लिए पूर्व में निकाली गई आरक्षित श्रेणी के प्लॉट की योजना में आवेदन की तिथि 15 दिन बढ़ा दी गई है। किसान अब 30 सितंबर तक आवेदन कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि एक हजार प्लॉट के सापेक्ष अब तक करीब पांच सौ आवेदन ही प्राप्त हुए थे, इसलिए तिथि बढ़ाने का निर्णय लिया गया।

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