दुनिया भर में ब्याज दरों में लगातार कमी हो रही है, लेकिन भारत में इसकी सूरत बनती नजर नहीं आ रही। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने भी अब साफ संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि सस्ते बैंक कर्ज के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए। आरबीआइ ने इसके लिए महंगे कच्चे तेल को जिम्मेदार ठहराया है। आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण की मानें तो ब्याज दरें फिलहाल नीचे की तरफ आने वाली नहीं हैं। दो दिन पहले आरबीआइ गवर्नर डी. सुब्बाराव ने यह बात कही थी कि महंगाई पर काबू पाने में अभी कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है। इसलिए ब्याज दरों को लेकर केंद्रीय बैंक का रुख नहीं बदलेगा। उन्होंने यह भी संकेत दिए थे कि आरबीआइ जरूरत पड़ने पर ब्याज दरों को और बढ़ा भी सकता है। बुधवार को गोकर्ण ने संवाददाताओं को बताया कि कच्चे तेल की कीमतें अभी भी काफी ऊपर हैं। ऐसे में ब्याज दरों को नीचे लाने के आसार कम हुए हैं। वर्ष 2008 की ग्लोबल मंदी के दौरान कच्चे तेल की कीमतें कुछ दिनों के भीतर काफी नीचे आ गई थीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। वर्ष 2008-09 के ग्लोबल मंदी के दौरान दो हफ्ते के भीतर कच्चे तेल की कीमत 148 डॉलर प्रति बैरल के रिकार्ड स्तर से घटकर 53 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई थी। लेकिन अमेरिका व यूरोप के कई देशों में मांग कम होने के बावजूद कच्चे तेल की कीमत बुधवार को 107 डॉलर प्रति बैरल के करीब थी। कच्चे तेल की कीमत भारत में महंगाई की स्थिति को काफी हद तक प्रभावित करती है। आयात पर निर्भर होने की वजह से भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतें पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार से तय होती हैं। तेल कंपनियां कई बार पेट्रोल महंगा कर चुकी हैं, जिससे महंगाई की दर बढ़ रही है। Source : Dainik Jagran

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